Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 57
________________ ४९ दोनों लहरों में से किसी को भी बारी-बारी से रेडियो रिसी. वर के अन्दर लाया जा सकता है। अगर हम २५.१ मीटर वाली लहर को अन्दर लाना चाहते हैं तो हमें रेडियो के अन्दर २५.१ मीटर की लहर उत्पन्न करनी पड़ेगी। जब दोनों लहरों की लम्बाई बराबर हो जाती है तो बाहर वाली लहर तुरन्त अन्दर आ जाती है और उस लहर पर जो स्टेशन बोल रहा है वह हमें सुनाई देने लगता है । इस क्रिया को स्वर मिलाने की क्रिया अथवा ट्यूनिंग (Tuning) कहा जाता है। यह क्रिया एक घुडी को घुमाने से सम्पन्न की जाती है जिसे ट्यूनिंग नौब (Tuning knob) कहते हैं । एक संकेतक (Printer) जो घुडी को घुमाने से डायल (Dial) पर चलता है उससे मीटर का परिवर्तन मालूम पड़ता रहता है । जिस प्रकार रेडियो के अन्दर किसी लहर के उत्पन्न करने पर ठीक उसी तरह की लहर बाहर से अन्दर पा जाती है, उसी प्रकार मस्तिष्क के अन्दर जो तरंगें उत्पन्न होती हैं उससे बाहर की तरंगों का मस्तिष्क के अन्दर पाश्रव होता है अर्थात् प्रत्येक विचार के साथ मस्तिष्क में तरंगों की उत्पत्ति होती है और वाह्य पुद्गल का हमारी प्रात्मा के साथ सम्बन्ध होता है । जैन शास्त्रों की भाषा में इसे कम वर्गणामों का पाश्रव कहा जाता है । ये कर्म-वर्गणा मात्मा के चारों मोर लेप के रूप में चढ़ जाती हैं । कर्मों के लेप से चढ़ी हुई प्रात्मा मृत्यु के समय जब शरीर से निकलती है तो पोद्गलिक द्रव्य का सम्पर्क होने के कारण चारों ओर से घेरे हुये पुद्गल उसको अपनी मोर खींचते हैं। न्यूटन के 'गुरुत्वाकर्षण' के जिस सिद्धान्त का

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