Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 55
________________ ४७ प्रनिश्चयवाद नहीं है वरन् संसार के अनेक परस्पर विरोधी धर्मों में समन्वय ( Unity amongst diversity) स्थापित करने वाला अनुपम सिद्धान्त है । यह मनुष्य को उदार और सहिष्णु बनाता है, परस्पर बन्धुत्व की भावना को बढ़ाता है और जीवन को सुखी बनाने के अनेक रास्ते सुझाता है, इसीलिये परमागम में उसे समस्त नय विलासों के विरोध को नष्ट करने वाला कहा गया है ।

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