Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 48
________________ यदि वह पुनः प्रश्न करे कि मैं आपके उत्तर से सन्तुष्ट नहीं हूँ, मैं तो इस पदार्थ का मूल स्वभाव जानना चाहता हूं, तो उसका यह उत्तर होगा कि इसका मूल गुण शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। न्यायशास्त्र की भाषा में कुचला जहर हो सकता है, नहीं भी हो सकता है (s may be P may not be P, may and may not be l', अर्थात् strychnin may be poison, may not be poison, ard may and may not be poison simultaneously) और उमका मूल स्वभाव अव्यक्त है। इसी तरह से प्रत्येक वस्तु के सम्बन्ध में ऐसे तीन भंग उत्पन्न हो जाते हैं और इन्ही के परस्पर संघटन से मात भंगों की उत्पत्ति होती है, जिनके नाम इस प्रकार है : (१) स्याद अस्ति, (२) स्याद नास्ति, (३) स्याद अस्ति नास्ति, (४) स्याद अव्यक्तव्य, (५) म्याद अस्ति अव्यक्तव्य, (६) स्याद नास्ति अव्यक्तव्य, (७) स्याद अस्ति नास्ति अव्यक्तव्य । इसको एक स्पष्ट उदाहरण से समझा जा सकता है :- यदि हम अस्ति, नास्ति, अव्यक्तव्य को नोन, मिर्च, खटाई की संज्ञा दें तो इनके चार और भिन्न मिश्रण बन सकते हैं, जैसे नोन मिर्च, मिर्च खटाई, नोन खटाई और नोन मिर्च खटाई। एक रोचक दृष्टान्त है जो बहुधा शास्त्रों में सुना जाता है कि किसी नगर में सात अन्धे व्यक्ति रहते थे। उस नगर में एक बार हाथी पाया और वे उसे देखने के लिये निकल पड़े। सातों अन्धे हाथी के विभिन्न अंगों पर हाथ फेरकर पुनः एक

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