Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 36
________________ अधिक गोल हो जाता है। इस कारण ब्रह्माण्ड की सीमायें ग ल हैं । शक्ति जब ब्रह्माण्ड की गोल सीमाओं से टकराती है तब उसका परावर्तन हो जाता है और वह ब्रह्माण्ड से बाहर नहीं निकल पाती। इस प्रकार ब्रह्माण्ड की शक्ति अक्षुण्ण बनी रहती है और इस तरह वह अनन्त काल तक चलती रहती है। पुद्गल की विद्यमानता से आकाश का गोल हो जाना एक ऐसे लोहे की गोली है जिसे निगलना आमान नहीं । पाइन्मटाइन ने इम ब्रह्माण्ड को अनन्त काल तक स्थाई रूप देने के लिये ऐमी अनूठी कल्पना की। दूसरी ओर जैनाचार्यों ने इस मसले को यू कहकर हल कर दिया कि जिस माध्यम में होकर वस्तुओं, जीवो और शक्ति का गमन होता है, लोक से परे वह है ही नहीं। यह बड़ी युक्तिसंगन और बुद्धि गम्य बात है। जिम प्रकार जल के अभाव में कोई मछली तालाब की सीमा से बाहर नहीं जा सकती, उसी प्रकार लोक से अलोक में शक्ति का गमन ईथर के प्रभाव के कारण नहीं हो सकता। जैन शास्त्रों का धर्म द्रव्य मैटर या एनर्जी नहीं है, किन्तु साइन्स वाले ईथर को एक सूक्ष्म पौद्गलिक माध्यम मानते आ रहे हैं और अनेकानेक प्रयोगों द्वारा उसके पौद्गलिक अस्तित्व को सिद्ध करने की चेष्टा कर रहे हैं, किन्तु वे अाज तक इस दिशा में सफल नही हो पाये हैं । हमारी दृष्टि से इसका एक मात्र कारण यह है कि ईथर अरूपी पदार्थ है। कहीं तो वैज्ञानिकों ने ईथर को हवा से भी पतला माना है और कही स्टील से भी अधिक

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