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पश्चिम में जिम तरह डेमोक्राइटम ने और भारत में ऋषि कणाद और जैनाचार्यों ने पुद्गल के परमाणों की सर्व प्रथम कल्पना की, उसके बाद डाल्टन का परमाणुवाद निकला पश्चात् जमन प्रो० मैक्माले क ने यह सिद्ध कर दिखाया कि एनर्जी अथवा ऊर्जा के भी एटम्म (अण) होते हैं और ये छोटे बड़े होते हैं । प्रकाश के एटम्म को फोटोन ( lhoton) कहते हैं। छोटे-बड़े होने के कारण ही ये भिन्नभिन्न रंगों को उत्पन्न करते हैं। लाल रंग के फोटौन छोटे होते हैं और नीले रंग के बड़े। यहां तक नो बात ठीक है मगर जैनाचार्यों की विशेषता यह है कि उन्होंने ममय को भी एटौमिक बताया अर्थात् ममय के भी एटम्म (रण) होते हैं और उन्हें कालाण कहते हैं । माउन्म में यह बात अभी तक नही निकली, भविष्य में निकल मकतो है ।
जैन शास्त्रों में व्यवहार काल का निम्न पैमाना दिया हुआ है :
६० प्रतिविपलांग का १ प्रतिविपल ६० प्रतिविपल वा १ विपल ६० विपल का ? पल ६० पल का १ घड़ी अर्थात् २४ मिनट
.:. १ मिनट - ६० x ६० X ६० x ६०
= ५४०००० प्रतिविपलांग जैन शास्त्रों में प्रतिविपलांश को ममय की सबसे छोटी यूनिट माना है और यह एक सेकिण्ड का नो हजार वां भाग