Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 18
________________ म्कन्ध, जल की वे नन्हीं-से-नन्ही वूद हैं जिसमें जल के सभी गुण विद्यमान रहते हैं और जिमे काटकर और छोटा नहीं किया जा सकता। जल का यह म्वन्ध इतना छोटा होता है कि जर्मन प्रोफेसर एन्डेड (Andraddr.) ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि प्राधी छटांक जल में, जल के स्कंधों की संख्या इतनी अधिक है कि यदि मंसार के सभी प्राणी (जिनकी संख्या आज ३ अरब है) बच्चे, दृढ़े और जवान सभी मिलकर उन्हें बड़ी तेजी से गिनना प्रारम्भ करदें (एक सेकिण्ड में ५) और बिना म्के रात-दिन गिनते ही चले जायें तो उनको गिनने में ४० लाख वर्ष लगगे। जैसा कि कहा गया है जल के स्कन्ध में ३ परनाण होते हैं -दो हाइड्रोजन के और एक प्राक्मीजन का । इमी प्रकार अन्य पदार्थो के स्कन्धों में भी परमाण की भिन्न-भिन्न संख्या पाई जाती है, यहाँ तक कि किमी स्कन्ध में परमाणों की संख्या सौ या इससे भी अधिक हो सकती है । जैनागम में परमाणुओं के समूह का नाम स्कन्ध है। परमाणु-रचना 'गोम्मटमार' जीवकाण्ड में परमाणु को षटकोणी, खोखला और मदा दौड़ता भागता हुआ बतलाया गया है । जैसा अभी कह पाये हैं इसकी रचना स्निग्ध और रूक्ष कणों के संयोग से होती है । हाइड्रोजन का परमाणु सबसे हलका और छोटा है । इसके मध्य में धन विद्युत कण (Proton) बहुत थोड़े से स्थान में सिकुड़ा हुआ स्थिर रहता है । परमाणु

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