Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 16
________________ यह मान्यता बनी रही कि संसार के पदार्थ ६२ मूल तत्वों से बने हैं, जैसे सोना, चांदी, लोहा, तांबा, जस्ता, शीशा, पारा आदि । ये तत्त्व अपरिवर्तनीय माने गये अर्थात् न तो लोहे को सोने में और न शीशे को चांदी आदि में बदला जा सकता है लेकिन सैकड़ों वर्षों तक रसायन शास्त्री इस प्रयत्न में लगे रहे कि वे जैसे भी हो तांबे या लोहे के टुकड़े को सोने में परिवर्तित कर सकें। ये लोग कीमियागर कहलाते थे, किन्तु प्राज तक इनको अपने कार्य में सफलता न मिल सकी। जब 'रदरफोर्ड' और 'टोमसन' के प्रयोगों ने यह सिद्ध कर दिया कि चाहे लोहा हो या सोना, दोनों ही द्रव्यों के परमाणु एक से ही कणों से मिलकर बने हैं तो कीमियागरी का सपना पुनः लोगों की आँखों के सामने आ गया । उदाहरण के लिये पारे के अणु का भार २०० होता है। २०० का अर्थ है हाइड्रोजन के परमाणु से २०० गुना भारी (हाइड्रोजन के परमाणु को इकाई माना गया है) उसको प्रोटोन द्वारा विस्फोट किया गया जिससे वह प्रोटोन पारे में घुल-मिल गया और उसका भार २०१ हो गया। (प्रोटीन का भार १ होता है) तब स्वत: उस नवीन अगु की मूलचूल से एक मल्फा कण निकल भागा जिसका भार ४ है, अत: उतना ही उसका भार कम हो गया और फलस्वरूप वह १६७ भार का अणु बन गया । और सोने के अणु का भार १६७ होता है । इस प्रकार पारे के पुद्गलाण की पूर्ण गलन प्रक्रिया द्वारा वह (पारा) सोना बन गया।

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