Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 33
________________ ३. धर्मास्तिकाय जेन मान्यता के अनुसार यह लोक छः द्रव्यों का समुदाय है, अर्थात् यह ब्रह्माण्ड छ पदार्थों से बना है । जीव (Soul), मजीव (Matter and Energy), धर्म (Medium of motion) और वह माध्यम जिस में होकर प्रकाश की लहरें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचती हैं (Luminiferous Aether of the scientist) qah, (Medium (f Rest) याने फील्ड ऑफ फोम (Field of force) आकाश (Pure space) और काल (Time)। जैन ग्रन्थों में जहां-जहां धर्म द्रव्य का उल्लेख पाया है वहां धर्म शब्द का एक विशेष पारिभाषिक अर्थ में प्रयोग किया गया है। यहां 'धर्म' का अर्थ न तो कर्तव्य (iluty) है और न उसका अभिप्राय सत्य, अहिमा आदि मत्कार्यों से है। 'धर्म' शब्द का अर्थ है एक अदृश्य, अम्पी (Non-material) माध्यम, जिममें होकर जीवादि भिन्न-भिन्न प्रकार के पदार्थ एवं ऊर्जा गति करते हैं। यदि हमारे और तारे मितारों के बीच में यह माध्यम नहीं होता तो वहां से आने वाला प्रकाग, जो लहरों के रूप में धर्म द्रव्य के माध्यम से हम तक पहुंचता है, वह नही पा मकता था और ये मव तारे मिनारे अदृश्य हो जाते। यह माध्यम विश्व के कोने-कोने में और परमाण के भीतर भरा पड़ा है। यदि यह द्रता नहीं होता तो ब्रह्माण्ड में कहीं भी गति नजर नहीं आती । यह एक मर्वमान्य सिद्धांत

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