Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 21
________________ दस गुना भारी होती है और सोना बीस गुना, किन्तु यह वज्र पानी से ५० हजार गुना भारी होता है। ऐसे वज्र का एक घनइञ्च टुकड़ा-जिसकी लम्बाई चौड़ाई ऊँचाई प्रत्येक एक-एक इञ्च हो, आसानी से बास्कट की जेब में रखा जा सकता है ; किन्तु यह ध्यान रहे उस टुकड़े का वजन ५० टन अर्थात् १४०० मन होगा। किसी-किसी तारे में यह पुद्गल इतना भारी है कि एक घन इञ्च का भार ६२० टन हो जाता है । जैन मान्यतानुसार इतना भारी पुद्गल संघति तभी बनता है जब अनन्तानन्त परमाणु एक प्रदेश में इकट्ठे तिष्ठते हैं। जिस नारायण शिला का जैन शास्त्रों में उल्लेख पाया जाता है और जिमको नारायण पद्वीधारी शलाका पुरुष अपनी कनिष्ठका उगली पर उठाकर अपने बल का परिचय देते हैं, वह किसी ऐसे ही पदार्थ की बनी हुई मालूम पड़ती न्यूक्लियस के चारों तरफ इलेक्ट्रोन (Electron) की परिक्रमा को एक रूपक में प्रगट किया जा सकता है । जिस प्रकार सौर मण्डल में अनेक ग्रह अपनी निश्चित परिधियों में निरन्तर परिक्रमा किया करते हैं; ठीक उसी प्रकार की क्रिया सूक्ष्म रूप में एटम के अन्दर हुआ करती है । कृष्ण और गोपियों की रासलीला में जिस प्रकार गोपियों कृष्ण के चारों ओर नाचती रहती थी, उसी प्रकार का नाच प्रत्येक एटम के अन्दर हो रहा है। हाइड्रोजन के एटम के अन्दर एक कृष्ण है और उसके चारों ओर केवल एक गोपी परिक्रमा

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