Book Title: Jain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Nagpur Vidyapith

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Page 13
________________ उपस्थापना १. जैन संस्कृति भारतीय सस्कृति के प्राचीनतम मित्र मंच के रूप में सुस्थिर और सुविकसित रही है। शात साहित्य दर्शन, इतिहास और पूरा की श्रृङखलाओ की वह ऐसी वेजीड़ सुनहरी कड़ी है जो तोड़ने पर की जोड़ी न जा सकी। प्रारम्भ से ही उसने सयम, सहयोग, सद्भाव र समन्वय पर आधारित अपनी सैद्धान्तिक भूमिका को स्वीकार किया जिसपर पकवित मस्य श्रीर मनोहरणीय प्रासाद समता, सर्वोदय मोर समुद्धि की मौतक किरणों को विखा रहा । २. जैन संस्कृति वैदिक और सिन्धु सभ्यता में प्रारम्भ से ही रही है । व्रात्य, वातरशना आदि अध्यागी से गुजरती हुई उसने उपनिषद विचार धारा की जन्म दिया। वैदिक विचारधारा में नया परिवर्तन लाकर मानवतावाद का पुनीत रस प्रवाहित किया। यह प्रक्रिया अनेक रूपों में काल मे भी चलती रही । BA संस्कृति विचारधारा की दृष्टि से श्रमण संस्कृति हुई है। इसलिए लक अध्ययन से पता सेही यही संस्कृति से बहुत बाद के प्रभाव से यह बच नहीं सके। संस्कृति के हर 收酵歌 का से परे नहीं। एक लम्बे समय तक वह बाद में उसमें दर्शन और योग के क्षेत्र में भी पदार्पण * PË

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