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१) मधुखरतरगच्छ- ११०७ ई. में जिनवल्लभसूरि ने स्थापित
किया। २) लघुखरतरगच्छ- १२७४ ई. में जिनसिंहसूरि ने स्थापित
किया। ३) वेगड़ खरतरगच्छ- १३६५ ई. में धर्मबल्लभगणि ने प्रारम्भ
किया। ४) पीप्पालक गच्छ- १४१७ ई. में. जिनवर्षनसूरि ने संस्था
पित किया। ५) आचारीय खरतरगच्छ- १५०७ ई. में आचार्य शान्तिसागरसूरि
ने स्थापित किया। ६) भावहर्ष खरतरगच्छ- १६२९ ई. में अमहर्षोपाध्याय ने प्रारम्भ
किया। ७) लघुवाचार्याय खरतरगच्छ- १६२९ ई. में जिनसागरसूरि संस्थापक
बने। ८) रंगविजय खरतरगच्छ- १६४३ ई. में रंगविजयगणि इसके
प्रवर्तक हुए। ९) श्रीसारीय खरतरगच्छ- १६४३ ई. में भी सादोपाध्यायने इसे
चलाया। तपागच्छ :
वि. सं. १६८५ में जगच्चन्द्रसूरि की कठोर साधना से प्रभावित होकर मेवाड़ नरेश जैनसिंह ने उन्हें “तपा" नामक विरुद से अलंकृत किया। जगच्चन्द्रसूरि मूलतः निर्ग्रन्थगच्छ के अनुयायी थे । 'तपा' विरुद के मिलने पर निर्ग्रन्थगच्छ का नाम तपागच्छ हो गया। कालान्तर में उन्हीं के अन्यतम शिष्य विजयचन्द्र सूरि ने शिथिलाचार को प्रोत्साहित किया और यह स्थापित किया कि साधु अनेक वस्त्र रख सकता है, उन्हें धो सकता है, घी, दूध, शाक, फल आदि खा सकता है, तथा साध्वी द्वारा बानीत भोजन ग्रहण कर सकता है।
तपागच्छ में भी यथासमय अनेक गच्छों की स्थापना हुई१) वृद्ध पोसालिक तपागच्छ- संस्थापक विजयचन्द्र सूरि २) लघु पोसालिक तपागच्छ- संस्थापक देवेन्द्रसूरि ३) देवसूरि गच्छ-
संस्थापक देवसूरि १. बमण भगवान महावीर, पिल्ल ५, माग २, स्पपिरावली, प. १५
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