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का प्रयत्न किया गया । प्राकृत भाषा के समानान्तर बैदिक संस्कृत अथवा छान्दस् भाषा थी जिसका साहित्यक रूप ऋग्वेद और अथर्ववेद में विशेष रूप से दृष्टव्य है । यास्क ने इसी पर निरुक्त लिखा और पाणिनि ने इसी को परिष्कृत किया। विडम्बना यह है कि प्राकृत के प्राथमिक रूप को दिग्दर्शित कराने वाला कोई साहित्य उपलब्ध नहीं जिसके आधार पर उसकी वास्तविक स्थिति समझी जा सके । हां, यह अवश्य है कि प्राकृत के कुछ मूल शब्दों को वैदिक संस्कृत में प्रयुक्त शब्दों के माध्यम से समझा जा सकता है । वैदिक रूप विकृत, किंकृत, निकृत, दन्द्र, अन्द्र, प्रथ, प्रथ्, क्षुद्र क्रमशः प्राकृत के विकट, कीकट, निकट, दण्ड, अण्ड, पट्, घट, क्षुल्ल रूप थे जो धीरे-धीरे जनभाषा से वैदिक साहित्य में पहुंच गये। इन शब्दों और ध्वनियों से यह कथन अतार्किक नहीं होगा कि प्राकृत जनबोली थी जिसे परिष्कृतकर छान्दस् भाषा का निर्माण किया । जनबोली का ही विकास उत्तरकाल में पालि, प्राकृत अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय भाषाओं के रूप में हुआ। तथा छान्दस् भाषा को पणिनि ने परिष्कृतकर लौकिक संस्कृत का रूप दिया। साधारणतः लौकिक संस्कृत में तो परिवर्तन नहीं हो पाया पर प्राकृत जनबोली सदैव परिवर्तित अथवा विकसित होती रही । संस्कृत भाषा को शिक्षित और उच्चवर्ग ने अपनाया तथा प्राकृत सामान्य समाज की अभिव्यक्ति का साधन बना रहा । यही कारण है कि संस्कृत नाटकों में सामान्य जनों से प्राकृत में ही वार्तालाप कराया गया है।
डॉ. पिशल ने होइफर, नास्सन, याकोबी, भण्डारकर आदि विद्वानों के इस मत का सयुक्तिक खण्डन किया है कि प्राकृत का मूल केवल संस्कृत है। उन्होंने सेनार से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि प्राकृत भाषाओं की जड़ें जनता की बोलियों के भीतर जमी हुई हैं और उनके मुख्य तत्त्व आदि काल में जीती-जागती और बोली जाने वाली भाषा से लिये गये हैं। किन्तु बोलचाल की वे भाषा, जो बाद को साहि यक भाषाओं के पद पर चढ़, गई, संस्कृत की भांति ही बहुत मेकी-पीटी गई, ताकि उनका एक सुगठित रूप बन जाय । अपने मत को सिद्ध करने के लिए उन्होंने सर्वप्रथम वैिदिक शब्दों से साम्य बताया और बाद में मध्यकालीन और आधुनिक भारतीय बोलियों में संनिहित प्राकृत भाषागत विशेषताओं को स्पष्ट किया।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि जिस प्रकार वैदिक भाषा उस समय की जनभाषा का परिष्कृत रूप है, उसी प्रकार साहित्यिक प्राकृत बोलियों का परिष्कृत रूप है । उत्तर काल में तो वह संस्कृत व्याकरण, भाषा और शैली
१. भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी, कि, ., ..