Book Title: Jain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Nagpur Vidyapith
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विषयाभिसूचिका
अकोटा, ३४४, ३५७
२४७, २४८ अकबर, ३३८
अनेकंस, २३३ अकलंक, २४६
अनेकान्तवाद और जैनेतर दार्शनिक, अक्खाणयमणिकोस, ९७
२४५ अंकाई-तंकाई, ३६१
अनेकान्तवाद के प्राचीन तत्त्व, २२३ अग्निवेसायन, १९
अनित्यता, १२३ अग्निपुराण, १४
अनिवृत्तिकरण, २८०-२८१ अंगुत्तरनिकाय, १६, १८, २३० अनुमान प्रमाण, २०७ अघाती प्रकृतियाँ, १६३
अनुमान के भेद, २०९ अचेलकता, ४३, ४५, २९९ अनुमानके अवयव, २१०, २१२ अचौर्याणुव्रत, २७२-७, २९५ अनुमान : पाश्चात्य तर्कशास्त्र में,२११ अजमेरा, ३३७
अनुमति त्याग प्रतिमा, २८०-८ अजयपाल, ३२९
अनुभववाद, १७७ अजित, ६, १५
अनुभागबन्ध १६३ अजीव,४०
अनुयोग साहित्य, ७५ अट्ठाईस मूलगुण, २९४-९६
अनुप्रेक्षा, १०६, ३०१ अणुव्रत, २६७, २८३
अपराजित, ५२ अणु और स्कन्ध, १५०
अपरिग्रह, २१, २८५ अदन्तधावन, ३००
अपसर्पिणी, ६ अद्वैतवाद, १४९-५०
अप्रमत्तसंयत, २८९, २९० अधःकर्म, ३१३
अपभ्रंश साहित्य, ११३ अधर्मद्रव्य, १६६
अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय अर्धमागधी आगम, ७९
भाषाएं, ७२ अर्धफलक सम्प्रदाय, ४३,
अपाय विचय, ३०७ अन्वय, ४८
अपूर्वकरण, २८९, २८१ अन्तक्रियावाद, १५०
अफगानिस्तान, ३३९, ३४१ अन्धकार, १४८
अभयदेव, ९२, १०३ अनस्तिकायिक, १३०
अभिजातियां, १५८ अनशन, ३०४
अभाव प्रकार, २४५ अन्यथानुपपत्ति, २०९
अभिलेख, ९६ ३८० बनेकान्तवाद, २२, ३८, २२१, २२३, अभेदवाद, १८५, २२३

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