Book Title: Jain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Nagpur Vidyapith

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Page 436
________________ वर्ष पहले लाने का प्रयत्न किया था। “समन्तभद्र ने इसी तथ्य को सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्ष मिदं तवैव" कहकर सर्वोदयवाद की प्रस्थापना की पी। आधुनिक मानस तर्कवादी और सूक्ष्मदृष्टा है। अन्धश्रवा की ओर उसका कोई झुकाव नहीं। साम्प्रदायिकता, धार्मिकता और जातीय बन्धनों के कटघरे को तोड़कर वह उनसे दूर हटता चला जा रहा है। कला और विज्ञान के बलोक में अब वह विश्ववन्धुत्व की भावना की ओर उन्मुख हो रहा है। मानवता का पुजारी बनकर मानव-मानव को जोड़ने का एक पुनीत संकल्प लिये आज की नयी पीढ़ी आगे बढ़ने का संकल्प किये हुए है। तृतीय विश्वयुद्ध की काली मेघमाला को नष्ट करने का यथाशक्य प्रयत्न करना उसका उद्देश्य बना हुमा है। इस विश्वबन्धुत्व के स्वप्न को साकार करने में भ. महावीर के विचार निःसंदेह पूरी तरह सक्षम है। उनके सिद्धान्त लोकहितकारी और लोकसंग्राहक समाजवाद और अध्यात्मवाद के प्रस्थापक है। उनसे समाज और राष्ट्र के बीच पारस्परिक समन्वय बढ़ सकता है और मनमुटाव दूर हो सकता है । एक मंच पर भी विभिन्न पक्ष बैठकर एक दूसरे के दृष्टिकोणों को सही रूप से समझा जा सकता है। इसलिये जैन सिद्धान्त विश्व शान्ति प्रस्थापित करने में अमूल्य कारण बन सकते हैं। महावीर इस दृष्टि से सम्यक दृष्टा थे और सर्वोदय तीर्थ के सम्यक् प्रणेता थे। मानव मूल्यों को प्रस्थापित करने में उनकी यह विशिष्ट देन है जो कभी भुलायी नहीं जा सकती। इस सन्दर्भ में यह आवश्यक है कि आधुनिक मानस धर्म को राजनीतिक हथकण्डा न बनाकर उसे मानवता को प्रस्थापित करने का एक अपरिहार्य साधनात्मक केन्द्रबिन्दु माने। मानवता का सही साधक वह है जिसकी समूची साधना समता और मानवता पर आधारित हो और मानवता के कल्याण के लिये उसका उपयोग हो। एतदर्थ खुला मस्तिष्क, विशाल दृष्टिकोण, सर्वधर्मसमभाव संयम और सहिष्णुता अपेक्षित है। महावीर के धर्म की मूल आत्मा ऐसे ही पुनीत मानवीय गुणों से सिञ्चित है और उसकी अहिंसा बन्दनीय तथा विश्वकल्याणकारी है।

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