Book Title: Jain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Nagpur Vidyapith

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Page 399
________________ ३७५ का अंकन है। साथ ही श्रुत देवी अपने परिकर सहित चित्रित है। अम्बिका, पूजा अर्चना की सामग्री, मातंगयक्ष, हाथी आदि का अंकन होयसलशैली में हुमा है। संघवी पाड़ा ग्रन्यभण्डार पाटन की निशीपचूणि शान्तिनाय जैन मन्दिर में स्थित नगीनदास भण्डार की शाताधर्म सूत्र प्रति, जैन अन्य भण्डार, छाणी की बोषनियुक्ति, जैन सिद्धान्तभवन मारा की तिलोय पण्णत्ति और त्रिलोकसार आदि ताडपत्रीय प्रतियों में विविध चित्रांकन उपलब्ध है। ताड़पत्रीय पिण्ड नियुक्ति की पाण्डुलिपि में भी सुन्दर चित्रण मिला है। उसमें हाथी और कमल पदक अंकित हैं। दो कमल पुष्पों के बीच दो वत्तों को चित्रित किया गया है, एक वृत्त कमलदलों से निर्मित है और दूसरा हंसों के घेरे से । हंसों का यह आलंकारिक चित्रण बारहवीं शताब्दी में प्रचलित हुआ है। शांतिनाथ मंदिर, खम्भात की ज्ञानसूत्र की प्रति पर सरस्वती का चित्रण तथा दशवकालिक लघुवृत्ति की प्रति पर दो जैन साधु एवं श्रावक का चित्रण भी उल्लेखनीय है। अंबिका और विद्यादेवियों के भी चित्र यहाँ मिलते हैं। ये चित्र लगभग तेरहवीं शताब्दी के हैं। कुछ अन्य प्रतियों में विषयवस्तु के अनुरूप चित्रांकन किया गया है। तीथंकरों के जीवन चरितीय चित्रांकनों ने देवी-देवताओंके चित्रांकन का स्थान ग्रहण कर लिया। सुबाहुकथा की प्रति ऐसी ही है। ताडपत्रों का उपयोग लगभग चौदहवीं शताब्दी तक होता रहा। कल्पसूत्र और कालकाचार्य कथा की चित्रित ताडपत्रीय पाण्डुलिपियाँ इसी काल की है। इस काल में लघुचित्र बनाये जाते थे। रंगों को उभारने के लिये कहीं-कहीं स्वर्ण का भी उपयोग किया गया है। षड् खण्डागम महाबन्ध और कषायपाहुड की ताडपत्रीय प्रतियों पर दक्षिण परम्परा का कुछ प्रभाव दिखाई देता है। विस्फारित नेत्रोंका अंकन तथा दानदाताओं और उपासकों के चित्र यहाँ अंकित हैं। इनमें रेखा शैली तथा सीमित रंग योजना को अपनाया गया है। इनका काल बारहवीं शताब्दी का प्रारम्भिक माना गया है। देवी-देवताओं का चित्रण कुछ रहस्यात्मकता को लिये हुए है। त्रिलोकसार में संदृष्टियों को चित्रोपम शैली में अंकित किया गया है। इसी प्रकार के और भी ताडपत्रीय चित्र उपलब्ध होते हैं।' १. भित्ति चित्र, कसम्पूर शिवराति ।

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