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नेनि जिनेश्वर और 'ताय' शब्द का भी प्रयोग हुआ है । ताय ने सगर को उपदेश दिया कि मोक्ष का सुख ही सर्वोत्तम सुख है। हम जानते है कि वैदिक विशेषतः ऋग्वेद दर्शन में मोक्ष को साध्य नहीं माना गया है, परन्तु तामे अरिष्टनेमि के उपदेश में मोक्ष साध्य है अत: इस उपदेश का सम्बन्ध जैन धर्म के बाईसवें तीर्थकर अरिष्टनेमि से ही होना चाहिए । उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावक था कि 'लंकावतार' में बुद्ध को भी अरिष्टनेमि कहकर उल्लिखित किया गया है। इसका मूल कारण उनकी अहिंसात्मक साधना है। इतिहास की दृष्टि से वे यदुवंशी कृष्ण के चचेरे भाई थे। इन उद्धरणों से अरिष्टनेमि का व्यक्तित्व ऐतिहासिक माना जाने लगा है। पार्श्वनाथ :
पार्श्वनाथ जैन परम्परा के तेईसवें तीर्थंकर हैं। अभी तक उनके व्यक्तित्व को ऐतिहासिक स्वीकार नहीं किया गया था। परन्तु हर्मन जैकोबी ने बोट साहित्य के आधारपर जैन परम्परा की प्राचीनता स्थापित की और यह सिर किया कि पार्श्वनाथ महावीर के लगभग २५० वर्ष पूर्व हुए।'
· पार्श्वनाथ का जन्म ई. पू. लगभग ९-१० वीं शताब्दी में वाराणसी के ईक्वाकु वंशज राजा अश्वसेन और रानी वामा के घर हुमा । इस समय नेमिनाथ का प्रभाव जन समाज में बना था। पार्श्वनाथ के माता-पिता उनके अनुयायी थे । श्रमण परम्परा की सुसंस्कृत पृष्ठभूमि के रूप में उन्हें परिवार का वातावरण मिला। लगभग ३० वर्ष तक उन्होंने अध्यात्म चिन्तन पूर्वक अपना समय घर में ही बिताया। बाद में वैराग्य लेकर तपस्वी हो गये और लगभग १०० वर्ष की अवस्था में वे सम्मेद शिखर पर्वत से निर्वाण को प्राप्त हुए।
पाश्र्वनाथ श्रमण परम्परा का उद्घट प्रभावशाली व्यक्तित्व था । बोट साहित्य में उल्लिखित श्रमण सिध्दान्तों से उसका निकट सम्बन्ध था। महात्मा बुद्ध का चाचा वप्प शाक्य पार्श्वनाथ परम्परा का अनुयायी था।' 'धर्मोत्तर १. महाभारत से नेमिनाथ सम्बन्धी निम्नलिखित उल्लेख उपत किये गये है।
अशोकस्तारणस्तारः शूरः शारिजिनेश्वर : ॥१४९-५०. कालनेमि महावीर : शूर : शारिजिनेश्वर : १४९-८२.
शान्तिपर्व, २८८.४, २८८.५-६. २. हरिवंशपुराण (वैदिक) १.३३.१. 3. The Sacred books of the East, Vol. XLV, introduction, P. 21. ४. बंगुत्तरनिकाय, चतुक्तनिपात, बग्ग ५. बटुकवा.