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१. सुषर्मा २. जम्बू ३. प्रभव ४. शय्यंभव
- २० वर्ष ५. यशोभद्र - ५० वर्षे - ४४ वर्ष ६. संभूतिविजय - ८ वर्ष - ११ वर्ष ७. भद्रबाहु (द्वितीय) - १४ वर्ष - २३ वर्ष ८. स्थूलभद्र
- ४५ वर्ष
कुल २१५ वर्ष
यहां यह दृष्टव्य है कि जैन परम्परानुसार हेमचन्द्र ने 'परिशिष्टपर्वन' में भगवान महावीर के निर्वाण के १५५ वर्ष बाद चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यकाल बताया है। यहां यह भी स्मरणीय है कि आचार्य हेमचन्द्र अवन्ती राजापालक के राज्यकाल के ६० वर्षों की गणना को किसी कारणवश भूल गए थे । अर्थात् महावीर निर्वाण के (१५५ + ६०) २१५ वर्ष बाद चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक हुबा होगा।
उक्त आचार्य कालगणना के अनुसार दिगम्बर परम्परा ने भ. महावीर निर्वाण के १२वर्ष तक गौतम गणघर का काल माना है, और उनके बाद उनके उत्तराधिकारी क्रमशः सुधर्मा और जम्बुस्वामी को रखा है पर स्थविरावली में गौतम के स्थान पर सुधर्मा का काल २० वर्ष (१२ +८-२०) रखा है जबकि कल्पसूत्र पूर्ववर्ती परम्परा को ही स्वीकार कर महावीर निर्वाण के बाद १२ वर्ष गौतम' का और आठ वर्ष सुधर्मा का काल निर्धारण करता है। यह कालगणना जो जैसी भी हो, पर दोनों परम्परायें भद्रबाहु के कुशल नेतृत्व को सहर्ष स्वीकार करती हुई दिखाई देती हैं । अन्तर यहां यह है कि दिगम्बर परम्परा महावीर निर्वाण के १६२ वर्ष बाद भद्रबाहु का निर्वाण समय मानती है जबकि श्वेताम्बर परम्परा १७० वर्ष बाद । यहां लगभग आठ वर्ष का कोई विशेष अन्तर नहीं । पर समस्या यह है कि इस कालगणना से भद्रवाह बोर चन्द्रगुप्त मौर्य की समकालीनता सिद्ध नहीं होती । उन दोनों महापुरुषों के बीच वही प्रसिद्ध ६० वर्ष का अन्तर पड़ता है। अर्थात् यदि भद्रबाहु के समय (वीर नि. सं. १६२) में ६० वर्ष बढ़ा दिये जायें तो चन्द्रगुप्त मौर्य और भगवाहु की समकालीनता ठीक बन जाती है । अथवा चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में से ६० वर्ष पीछे हटा दिये जायें, जैसा कि हेमचन्द्राचार्य ने महावीर निर्वाण से २१५ वर्ष की परम्परा के स्थान में १५५ वर्ष पश्चात् चन्द्रगुप्त का राजा होना लिखा है, तो दोनों की समकालीनता.बन सकती है।
१. जैन साहित्य का इतिहास : पूर्व पीठिका, पृ. ३४२.