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याय भिन्ना निगण्ठा द्वेधिकजाता मण्डनजाता कलहजाता विवादापमा बना मञ्चं मुखसत्ती वितुदन्ता विहरन्ति-"न त्वं इमं धम्मविनयं आजानासि, महं इमं धम्मविनयं आजानामि । कि त्वं धमविनयं माजानिस्ससि ? मिच्छापटिपनो त्वमसि, अहमस्मि सम्मापटिपन्नो । सहितं मे अमहितं ते । पुरे वचनीयं पच्छा अवच, पच्छा वचनीयं पुरे अवच । अधिचिणं ते विपरासत्तं । आरोपितो ते वादे निग्गहितोसि, चर वादप्पमोक्खाय । निम्बठेहि वा सो महोती" ति। वधो येव तो मजे निगण्ठेसु नातपुत्तियेसु वत्तति ।"।
भाचार्य कालगणना :
भगवान महावीर के निर्वाण के बाद दिगम्बर परम्परानुसार ३२ पर्व क्रमशः तीन केवली और १०० वर्ष में पांच श्रुतकेवली इस प्रकार हुए'
केवली १. गौतम गणधर २. सुधर्मा स्वामी
(लोहार्य) ३. जम्बू स्वामी
असफेवली - १२ वर्ष १. विष्णुकुमार (नन्दि)- १४ वर्ष - ११ वर्ष २. नन्दिमित्र - १६ वर्ष
-
२२ वर्ष
- ३९ वर्ष ३. अपराजित ------ ४. गोवर्धन कुल-६२ वर्ष ५. भद्रबाहु (प्रथम)
- १९ वर्ष
- २९ वर्ष कुल-१००'वर्ष
इस प्रकार महावीर निर्माण के १६२ वर्ष (६२ + १.०) पर्यन्त क्ली जोर श्रुतकेवली रहे । श्वेताम्बर परस्परानुसार महावीर के जीवन काल में ही ९ गणपरों का निर्माण हो गया था । मात्र इन्द्रभूति गौतम बीर बार्य सुधर्मा शेष रह गये थे। महावीर निर्माण के उत्तरवर्ती आचापों की कालगणना स्वविरावली में इस प्रकार बी गई है।
१. सुत्तपिटक, मजिममनिकाय, सामगामसुत्तन्त वीपनिकाय, परिकवरग, पासाविसुत,
संगीतिसुत्त. २. धवला, भाग १, पृ.१; तिलोयपति , १४८२-८४ चावला, भाग १,
पृ. ८५; इन्द्रश्रुतापतार, ७२-७८ मन्दिचीय तालीम सिद्धान्त भास्कर, , भाग, किस्ल ४.