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पनीर बोर गरीब के बीच की खाई को पूरा करने के लिए हमावायक है
कोई भी व्यक्ति आवश्यकता से अधिक किसी भी वस्तु का संग्रहसन्यायपूर्वक सक्ने बौर संग्रहीत वस्तु को प्रसन्नतापूर्वक ऐसे व्यक्तियों को बांट रेजिनको उसकी नितान्त आवश्यकता है। यही सच्चा समाजवाद है। इसी को भ.महावीर अपरिग्रहवत की संज्ञा दी है। इसी अपरिग्रहवाद अथवा समाजवाद परसदार की नींव सड़ी है। सर्वोदय की इस पुनीत विचारधारा के मूल सूत्र को समन्ता भने इन शब्दों में गूंथा है -
सर्वान्तवत् तद्गुण मुख्यकल्पं
सर्वान्तशून्यं च मियोऽनपेक्ष्यम् । सर्वापदामन्तकरं निरन्तं
सर्वोदयं तीथिमिदं तवैव ॥ प्राचीन काल में जातिभेद का भयंकर ववंडर सडा हमापात्र समाष बाह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्षों में विमान विभाजन से ऊँच-नीच के विचारों से प्रभावित होकर समाज की जा देषभाव का विषाक्त बीज पर कर चुका था। उसे दूर करने के लिए बहार ने यह क्रान्तिकारी विचार प्रस्तुत किया कि उनका शासन उच-नीच, सभी के लिए खुला है, क्योंकि जिस प्रकार से एक स्तम्भ के आश्रय से प्रासार टिक नहीं सकता, उसी प्रकार एक पुरुष के माश्रय से बैन शासन भी सिरहा सकता।
उच्चावचजनप्रायः समयोऽयं जिनेशिनाम् ।
न कस्मिन् पुरुष तिष्ठेदेकस्तम्भ इवालयः ।। कठोर जातिवाद की दूषित भावना को सुव्यवस्थित वीर सही रूप देने के लिए महावीर ने जन्म के स्थानपर कर्म का आधार लिया। उन्होंने कहा कि उपकुल में उत्पन्न होने मात्र से व्यक्ति को ऊँचा नहीं कहा जा सकता । वह कंचा तभी हो सकता है जबकि उसका चरित्र या कर्म ऊँचा हो। हमीर महावीर ने 'न जाइविसेस कोई' कहकर चारों वर्गों को एक माय मातियो रूप में देखा है
कम्मणा वम्मणो होइ कम्मुणा होइ सत्तियो।
वइस्सो कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ।। उत्तराध्ययन, २५.३३ तवा इस मनुष्य जाति को माचरण के आधार पर विभाषित किया है
ब्राह्मणः क्षत्रियादीनां चतुर्णामपि तत्त्वतः । एकव मानुषी जाति राचारेण विमण्यते ॥