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जा सकता । जैनों के प्राचीन साहित्य, कला और संस्कृति की ओर दृष्टिपात करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन भारत में वह अत्यन्त समृड और बहुजनपालित संस्कृति थी। द्रविड, वैदिक आर्यों से भिन्न थे। इसलिए उन्हें 'अनार्य' कहा गया । 'पद्मपुराण' (प्रथम सृष्टि खण्ड) और 'विष्णु पुराण' (अध्याय, १७-१८) में समागत दिगम्बर योगी जिन्हें मायामोह की कथा में दास, दस्यु, असुर आदि नामों से व्यवहृत किया गया है, वेद विरोधी जैन ही होना चाहिए । इक्ष्वाकुवंशी ऋषभदेव को पुरुषवंशी भी कहा गया है । 'सत्पथ ब्राह्मण' (६.८४) में पुरुषों को ही 'असुर' कहा गया है । ये असुर ही मूल निवासी 'आर्य' होना चाहिए ।
सिन्धु सभ्यता और जैन संस्कृति :
नदियों की घाटियां संस्कृतियों के उद्भव एवं विकास की दृष्टि से विश्व में प्रसिद्ध है । सुमेरियन, लेबोलियन, असीरियन आदि संस्कृतियों की उत्पत्ति
और विकास दजला-फरात की घाटी में हुआ, मिश्र की प्राच्य संस्कृति नील नदी की मनोरम घाटी से ही उदित और विकसित हुई । इसी प्रकार भारत में सिन्धु नदी की घाटी प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक विशाल भण्डार जैसी सिद्ध हुई। सन् १९२२ में मोहेनजोदडो और हडप्पा नगरों की खुदाई हुई । उसमें सुन्दर भवन, आभूषण, अनाज, माप तौल के विभिन्न साधन, मूर्तियां आदि उपलब्ध हुई है। सभ्यता की विकसित अवस्था से पता चलता है कि यहां तत्कालीन सुनियोजित नागरिक सभ्यता का केन्द्र रहा होगा । इस सभ्यता का प्रसार मोहेन्जोदडो और हड़प्पाके अतिरिक्त चन्हदडो, झूकरदडो, अम्बाला, करांची, केला (बलूचिस्तान) आदि स्थानों तक रहा है । डॉ. गार्डन चाइल्ट तथा हाल तो इसी सिन्धु सभ्यता को सुमेरियन सभ्यता की जन्मदात्री मानते है । विद्वानों ने इसकी प्राचीनता लगभग ४००० ई. पू. से लेकर २५०० ई. पू. तक निर्धारित की है।
सिन्धु सभ्यता के मूल निवासी और आविष्कारक कौन थे, यह विवाद. ग्रस्त प्रश्न है । पर यह निश्चित है कि यह सभ्यता प्राग्वैदिक कालीन है और वैदिक संस्कृति से भिन्न है । वैदिक धर्म में मूर्तिपूजा का कोई स्थान नहीं था। वहां तो गाय की पूजा होती थी। अग्निकुण्ड एक अनिवार्य तत्व था। इसके विपरीत सिन्धु सभ्यता में मूर्तिपूजा का महत्त्वपूर्ण स्थान था । वहां के लोग ऋषभ (बैल) की पूजा करते थे । यज्ञ, अग्निकुण्ड अथवा शिश्नपूजा के विरोधी थे । इस प्रकार तुलनात्मक अध्ययन से यह कहा जा सकता है कि यह सिन्धु सभ्यता वैदिक विरोधी सभ्यता थी। इसमें कोई आश्चर्य नहीं, यदि यह