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चौव्ह
पुनीत चरणों मेरा मस्तक श्रदावनत है।
१७. अन्त में यह विनम्र निवेदन है कि ग्रन्थ लेखन में जहाँ जो-जैसी भी त्रुटियां हुई हों उनकी ओर पाठक हमारा ध्यान आकृष्ट करें। हम उनके आभारी रहेंगे। मुद्रण की त्रुटियों के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। यदि अध्येताओं के लिए यह ग्रंथ उपयोगी सिद्ध हो सका तो हम अपना परिश्रम सार्थक समझेंगे। इत्यलम् ।
-भागचन जैन भास्कर
न्यू एक्सटेन्शन एरिया, सदर, नागपुर, महावीर जयन्ती, २-४-१९७७