Book Title: Jain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Nagpur Vidyapith
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१३. प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखन में अनेक लेखकों के ग्रन्थों का उपयोग किया गया है जिनमें से सर्वश्री स्व. डॉ. हीरालाल जैन, पं. सुललाल संघवी, कैलाशचन्द्र शास्त्री, दलसुख मालवणिया, स्व. महेन्द्र कुमार न्यायाचार्म, दरबारी लाल कोठिया, मोहनलाल मेहता, मुनि नथमल विशेष उल्लेखनीय है।
न मूर्तिकला और स्थापत्यकला के लिखने में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित जैन स्थापत्यकला का भी उपयोग किया गया है। इन सभी विद्वानों बीर संस्थाओं के प्रति मै अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं।
ग्रन्च के आत में मैने प्लेट्स देना आवश्यक समझा । एदर्य श्री. गणेश ललवाणी, संपादक जैन जर्नल, कलकत्ता से निवेदन किया और उन्होंने बड़ी सरलता और उदारतापूर्वक चबालीस फोटो ब्लाक्स भेज दिये । इसी तरह श्री. सुमेरुचन्द्र जैन, सन्मति प्रसारक मण्डल, सोलापुर से भी सात ब्लाकस प्राप्त हो गये। श्री. बालचन्द्र, उप-संचालक, रानी दुर्गावती संग्रहालय, जबलपुर, गॅ. सुरेश जैन, लखनादोन, अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ संस्थान, शिरपुर तथा नागपुर संग्रहालय से भी ब्लाक्स उपलब्ध हो गये। डॉ. गोकुलचन्द्र जैन, वाराणसी ने अमेरिकन एकेडेमी से कुछ फोटो भी लेकर भेज दिये। हम अपने इन सभी मित्रों के स्नेहिल सहयोग के लिए अत्यन्त आभारी है। पर दुःख यह है कि हम इन फोटो ब्लाक्स का अर्थाभाव के कारण अधिक उपयोग नही कर सके।
१४. इस पुस्तक का पुरस्कार' हमारे कुलगुरु डॉ. दे. य. गोहोकरने लिखकर हमें प्रोत्साहित किया है। इसी प्रकार डॉ. अजय मित्र शास्त्री, प्राध्यापक और अध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व, नागपुर विश्वविद्यालय ने प्राक्कथन लिखकर मुझे उपकृत किया। डॉ. मधुकर आष्टीकर, भूतपूर्व अधिष्ठाता, कला संकाय, श्री. शिवचन्द्र नागर, अधिष्ठाता, कला-संकाय, श्री. गोवर्धन अग्रवाल एवं श्री. प्रो. वा. मो. काळमेष, आदि विद्वान मित्रों की समय-समय पर प्रेरणा मिलती रही। उसके लिए हम उनके आभारी है।
१६. प्रस्तुत पुस्तक का प्रकाशन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रदत्त अनुदान से हो रहा है । अतः उसका सहयोग भी अविस्मरणीय है। मैं अपनी पत्नी डॉ. पुष्पलता जैन, एम्. ए., पीएच.डी. के भी अनेक सुझावों से लाभान्वित हुबाहूँ। श्री. क. मा. सावंत, व्यवस्थापक, विश्वविद्यालय प्रेस का भी मधुर व्यवहार कार्य की शीघ्रता में कारण बना। अतः इन सभी का कुता हूँ।
१६. लेखक ने अपनी इस कृति को परमपूज्या मां श्रीमती तुलसीदेवी न को समर्पित किया है। उसकी प्रगति में उनका अमूल्य योगदान है। उनके

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