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आगम साहित्य की रूपरेखा
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श्वेताम्बर मत के अनुसार प्रथम वाचना के समय में भी भगवान् महावीर की सम्पूर्ण ज्ञान राशि सुरक्षित नहीं रह सकी। उसके ह्रास का क्रम उसी समय से प्रारम्भ हो गया। प्रथम वाचना आचार्य स्थूलभद्र की अध्यक्षता में हुई। द्वितीय वाचना
आगम संकलन का दूसरा प्रयास 'चक्रवर्ती सम्राट् खारवेल' ने किया। उनके सुप्रसिद्ध हाथी गुम्फा अभिलेख से यह जानकारी मिली है कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के मध्य में उड़ीसा के कुमारीपर्वत पर उन्होंने जैन श्रमणों को बुलाया और मौर्यकाल में उच्छिन्न हुए अंगों को उपस्थित किया। तृतीय माथुरी वाचना
आगम-संकलन का तीसरा प्रयत्न वीर निर्वाण 827 और 840 के मध्यकाल में हुआ । नन्दीसूत्र की चूर्णि में उल्लेख है कि द्वादशवर्षीय दुष्काल के कारण ग्रहण, गुणन एवं अनुप्रेक्षा के अभाव में सूत्र नष्ट हो गया। उस दुर्भिक्ष में भिक्षा मिलनी अत्यन्त दुष्कर हो गई। साधु छिन्न-भिन्न हो गए। अनेक बहुश्रुत और आगमधर मुनि दिवंगत हो गए। उस समय अतिशायी श्रुत का नाश हुआ। अंग-उपांग का बहुत बड़ा भाग नष्ट हो गया। उनके अर्थ का भी ह्रास हुआ। बारह वर्ष के इस दुष्काल के बाद साराश्रमण-संघस्कन्दिलाचार्य की अध्यक्षता में मथुरा में एकत्रित हुआ। उस समय जिन-जिन श्रमणों को जितनी-जितनी श्रुतराशि स्मृति में थी, उसका संकलन किया गया । इस वाचना में कालिक सूत्र एवं पूर्वगत के कुछ अंशों का संकलन हुआ । मथुरा में होने के कारण उसे 'माथुरी वाचना' कहा गया। युगप्रधान आचार्य स्कन्दिल ने उस संकलित श्रुत के अर्थ की वाचना दी, अत: वह अनुयोग उनका ही कहलाया । माथुरी वाचना को 'स्कन्दिली वाचना' भी कहा गया है। इस संदर्भ में एक यह भी अभिमत है कि दुर्भिक्ष के कारण श्रुत नष्ट तो नहीं हुआ था। सारा श्रुत उस समय विद्यमान था किन्तु आचार्य स्कन्दिल के अतिरिक्त अन्य सारे अनुयोगधर मुनि काल कवलित हो गए थे। मात्र स्कंन्दिल ही उस समय अनुयोगधर थे। दुर्भिक्ष समाप्त होने पर आचार्य स्कन्दिल ने मथुरा में पुन: अनुयोग प्रवर्तन किया इसलिए इसे 'माथुरी वाचना' भी कहा गया और वह सारा अनुयोग स्कन्दिल सम्बन्धी माना गया।'
1. (क) नंदी स्त्र, भूमिका पृ. 1 6 (ख) दशवैकालिक की भूमिका में उद्धृत-जर्नल ऑफ दी बिहार एण्ड ओडिसा रिसर्च सोसाइटी,
भाग 1 3, पृ. 2 36 2. नंदीचूर्णि, (ले. जिनदासगणी, बनारस, 1966) पृ. 9 3. नंदी, गाथा 33, (मलयगिरिवृत्ति पत्र 51) (दशवैकालिक, भूमिका पृष्ठ 27 पर उद्धृत)
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