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तत्त्वमीमांसा
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1.जगत का मूल तत्त्व है असत् । 2. जगत का मूल तत्त्व है सत् । 3. जगत का मूल तत्त्व है अचेतन ।
4. जगत का मूल तत्त्व है चेतन या आत्मा।' यूनानी दार्शनिकों का मन्तव्य
उपनिषदों की तरह ही यूनानी दार्शनिकों ने जगत् के मूल तत्त्व के संदर्भ में एक तत्त्व को ही मान्यता दी है। ग्रीक दार्शनिक थेलिज के अनुसार सृष्टि के प्रारम्भ में केवल जल का ही अस्तित्व था। इसका यह सिद्धान्त बृहदारण्यक की अनुगूञ्ज हैं। बृहदारण्यक में भी जल को जगत का मूल कारण माना गया है।
एनेक्जीमेण्डर के अनुसार असीम (boundless something) नामक पदार्थ विश्व का मूल तत्त्व था । जो पूरे आकाश में व्याप्त था । एनेक्जीमेंडर ने इस तत्त्व को God नाम से अभिहित किया है। यद्यपि यह स्पष्ट है कि एनेक्जीमेंडर का God भौतिक पदार्थ ही है। ___ एनेक्जीमेनस के अनुसार सम्पूर्ण वस्तुओं का आदि और अन्त वायु है। पाइथागोरस के अनुसार जो कुछ अस्तित्व है वह संख्यात्मक रूप में रहता है। इन्होंने संख्या को मूल माना है। हेराक्लाइट्स ने प्रोसेस को सत् माना है और उस प्रोसेस के प्रतीक के रूप में अग्नि को स्वीकार किया है। ये सारे दार्शनिक जगत् कारणता के सम्बन्ध में एक तत्त्ववादी हैं। इनकी विचारधारा जड़ाद्वैतवाद के समकक्ष है। जैन आगमों में विश्व
जैन आगम साहित्य में भी विश्व के कारण की जिज्ञासा परिलक्षित है। यह लोक (विश्व) क्या है? उत्तर दिया गया जीव और अजीव।' आगम प्रवक्ता के अनुसार असत् विश्व का कारण नहीं हो सकता। सत् ही विश्व का कारण है किंतु वह सत् एकात्मक नहीं है। द्विरूप है। चेतन
और अचेतन स्वरूप है। जैन दर्शन सृष्टि के सम्बन्ध में द्वैतवादी है। चेतन और अचेतन की 1. भगवई (खण्ड - 1) पृ. 1 3 4 2. Gomperz Theodor, The Greek Thinkers, (1964) Vol. I, P.48 : Thales would have regarded
water, the principle of all dampness as the primary element. 3. Masih, y, A Critical History of Western Philosophy, (Delhi, 1999) P. 5 : However for him
primarymatter was'boundless something'........Anaximandercallshisinfinite boundlessmatter
'God'........This God no doubt is matter. 4. Gomperz, Theodar, The Greek Thinkers, Vol. I P.56 : He substituted air for water as the pri
mary principle which engendered. 5. Masih, y, A Critical History of Western Philosophy P. 7: Pythagoras declared that whatever
exists, exists in number. Ibid, P. 18: For Heraclitus, not water or air is primordial stuff. Process alone is reality and is
best symbolised by fire. 7. ठाणं, 2/412
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