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जैन आगम में दर्शन
मानी जाती थी किंतु भगवान् महावीर ने इन भूतों का जीवत्व स्थापित किया । उन्होंने बतलाया - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस - ये सब जीव हैं। जितने प्रकार के जीव हैं, वे सब इन छह जीवनिकायों में समाविष्ट हो जाते हैं।
पृथ्वीकाय
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भगवान् महावीर ने छह जीव निकायों - पृथ्वी, अप्, तेजस्, वायु, वनस्पति और स की प्ररूपणा की है।' पृथ्वी सजीव है यह अन्यतीर्थिकों का अभिमत नहीं था। भगवान् महावीर ने इस नये पक्ष की स्थापना की। उनके अनुसार पृथ्वी स्वयं जीव है। जैन दर्शन के अनुसार वनस्पति काय के अतिरिक्त सभी काय के जीव प्रत्येकशरीरी हैं। प्रत्येक शरीरी का अर्थ है- प्रत्येक जीव का पृथक् पृथक् शरीर । पृथ्वीकाय भी प्रत्येक शरीरी है । जिन जीवों का पृथ्वी ही शरीर है वे पृथ्वीकायिक जीव कहलाते हैं।' सूक्ष्म एवं बादर के भेद से पृथ्वीकाय के दो भेद हैं तथा सूक्ष्म एवं बादर के भी पर्याप्त एवं अपर्याप्त दो-दो भेद और होते हैं । '
जैन आगम साहित्य में पृथ्वी, अप् आदि जीवों का विस्तार से वर्णन हुआ है। उनमें चेतना अव्यक्त होती है, इसलिए उनको व्यक्त चेतना वाले प्राणी की तरह सहजतया जाना नहीं जा सकता । भगवान् महावीर ने पृथ्वी आदि जीवों में केवल चेतना का ही प्रतिपादन नहीं किया है, किंतु इस विषय में अनेक अन्य तथ्य भी प्रस्तुत किए हैं। '
पृथ्वीकाय में श्वास
जीव विज्ञान आगम युग के दर्शन का मुख्य विषय रहा है। इसकी पुष्टि के अनेक साक्ष्य प्राप्त हैं । आगम - साहित्य में जीव के आहार और श्वास से लेकर चेतना के चरम विकास तक का गहन अध्ययन उपलब्ध है। एकेन्द्रिय जीव का श्वास विषयक महावीर और गौतम का संवाद बहुत रोचक है
गौतम ने पूछा- भंते ! दो, तीन, चार, पांच इन्द्रिय वाले जीव श्वास लेते हैं, हम जानते-देखते हैं। क्या एक इन्द्रिय वाले जीव- पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय भी श्वास लेते हैं ?
महावीर - हां, गौतम ! वे भी उच्छ्वास - निश्वास, आन और पान करते हैं। पेड़पौधे श्वास लेते हैं - यह सूक्ष्म यन्त्र वाले वैज्ञानिक युग में कहना आश्चर्य की बात नहीं है, किंतु ढाई हजार वर्ष पहले ऐसा कहना सचमुच आश्चर्य है । यांत्रिक उपकरणों द्वारा
1.
दसवे आलियं, 4/3
2. आयारो, 1 / 16, संति पाणा पुढो सिया ।
3.
तत्त्वार्थवार्तिक, 2/13/1, पृथिवी कायोऽस्यास्तीति पृथिवीकायिकः तत्कायसम्बन्धवःशीकृत आत्मा ।
4. जीवाजीवाभिगम, 6 / 2-3
5. आचारांगभाष्यम्, पृ. 37
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