________________
284
एवं आत्म-कर्तृत्व की स्वीकृति को माना है। किंतु ये दोनों मत विमर्शनीय हैं क्योंकि श्रमण निर्ग्रन्थों का प्रस्तुत क्रियावाद में समाहार नहीं हो सकता तथा वैशेषिक की अवधारणा भी सर्वथा क्रियावाद के अनुकूल नहीं है । सूत्रकृतांग चूर्णि में तो उसे स्पष्ट रूप से अक्रियावादी कहा है ' तथा स्थानांग में अक्रियावाद के आठ प्रकार में एक अनेकवादी है। उसके उदाहरण के रूप में आचार्य महाप्रज्ञजी ने वैशेषिक दर्शन का उल्लेख किया है ।"
अक्रियावाद
जो आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते उसे अक्रियावादी कहा जाता है । केवल चित्त शुद्धि को आवश्यक एवं क्रिया को अनावश्यक मानने वाले अक्रियावादी कहलाते हैं । वे बौद्ध दार्शनिक हैं । ' सूत्रकृतांग के प्रथम अध्ययन में बौद्धों को क्रियावादी कहा गया है ' तथा समवसरण अध्ययन की चूर्णि में बौद्धों को अक्रियावादी कहा गया है।' मुनि जम्बूविजयजी ने अपेक्षाभेद के आधार पर समन्वय करने का संकेत किया है तथा अंगुत्तर निकाय में बुद्ध को अक्रियावादी कहा है, ऐसा भी उन्होंने उल्लेख किया है ।' अक्रियावादी क्रिया अर्थात् अस्तित्व का सर्वथा उच्छेद मानते हैं । उनका अभिमत है कि सभी पदार्थ क्षणिक हैं। किसी भी क्षणिक पदार्थ की दूसरे क्षण तक सत्ता नहीं रहती अत: उसमें क्रिया की सम्भावना ही नहीं है। इसीलिए आत्मा आदि नित्य पदार्थों का अस्तित्व नहीं है। कोकुल, द्विरोमक, काण्ठेवि. प्रमुख अक्रियावादी हैं । "
सुगत आदि
नियुक्तिकार ने 'नास्ति' के आधार पर अक्रियावाद की व्याख्या की है ।" नास्ति के चार फलित होते हैं
1. आत्मा का अस्वीकार
2. आत्मा के कर्तृत्व का अस्वीकार
3. कर्म का अस्वीकार और
4. पुनर्जन्म का अस्वीकार । 10
Sikdar, J. C., Studies in Bhagawati sutra (मुज्जफरपुर, 1964 ) P. P. 449-450 The Kriyavadins may be identified with the followers of the Nyaya and vaisesika systems along with the Sramana Nirgrantha.
2. सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 254, सांख्यवैशेषिका ईश्वरकारणादि अकिरियवादी ।
3.
ठाणं, 8 / 22 का टिप्पण
1.
जैन आगम में दर्शन
4.
भगवती वृत्ति पत्र 944, अन्ये त्वाहुः - अक्रियावादिनो ये ब्रुवते किं क्रियया चित्तशुद्धिरेव कार्या, ते च बौद्धा इति । 5. सूयगडो, 1 / 1 /51
6.
7.
8.
सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 256, ...... .सुण्णवादिणो..
.अकिरियावादिणो ।
सूयगडंगसुत्तं, (मुनि जम्बूविजय, बम्बई 1978) प्रस्तावना, पृ. 10 ( टिप्पण संख्या 3 )
नत्थि त्ति अकिरियवादी य ।
षड्दर्शन समुच्चय, पृ. 21
9. सूत्रकृतांग नियुक्ति, गा. 118,
10. दशाश्रुतस्कन्ध, 6 / 3
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org