Book Title: Jain Agam me Darshan
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 328
________________ 308 जैन आगम में दर्शन विभिन्न वादों का नयवाद में समाहार जितने वचन के प्रकार हैं उतने ही नयवाद हैं और जितने नयवाद हैं, उतने ही परसमय हैं जावइया वयणवहा, तावइया चेव होंति णयवाया। जावइया णयवाया, तावइया चेव परसमया॥' आचार्य सिद्धसेन का यह वक्तव्य दार्शनिक विचारधाराओं की अनेकता की सूचना दे रहा है। वैचारिक विभिन्नता मानव मस्तिष्क की स्वाभाविक विशेषता है। भगवान् महावीर के समय में विभिन्न मतवाद प्रचलित थे। इसका अवबोध तत्कालीन जैन एवं जैनेतर साहित्य के अवलोकनसे प्राप्त हो जाता है। प्रस्तुत अध्याय में हमने जैन आगम साहित्य में उपलब्ध विभिन्न दार्शनिक मतवादों का संक्षिप्त विमर्श प्रस्तुत किया है। जैनदर्शन सृष्टि के सम्बन्ध में द्वैतवादी है। वह चेतन-अचेतन की स्वतंत्र सत्ता स्वीकार करता है। चेतन एवं अचेतन तत्त्व की पारस्परिक अन्तक्रिया से सृष्टि की उत्पत्ति उसे मान्य है। जगत् वैविध्य की व्याख्या भी वह काल, स्वभाव, नियति आदि किसी एक तत्त्व के आधार पर नहीं करता। उसके मन्तव्य के अनुसार इन सभी तत्त्वों का आपेक्षिक योगरहता है। किसी एक को वरीयता/ गरीयता प्रदान नहीं की जा सकती। सूत्रकृतांग में विभिन्न मतवादों का उल्लेख हुआ है एवं उनको समीचीन नहीं माना गया है। यद्यपि स्पष्ट रूप से वहां पर यह भी व्याख्यात नहीं हुआ है कि तद्विषयक जैन मन्तव्य क्या है ? किंतु उपर्युक्त मान्यताओं को पूर्वपक्ष के रूप में उपस्थापित करने से जैन मन्तव्य स्वत: फलित हो जाता है। 000 1. सन्मतितर्कप्रकरण, 3/47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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