Book Title: Jain Agam me Darshan
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 256
________________ 236 जैन आगम में दर्शन पूर्वजन्म की स्मृति से आत्मा से सम्बंधित सदेह का निवारण जैनदर्शन की आचार-मीमांसा का आधारभूत तत्त्व आत्मा है। आत्म स्वीकृति शून्य आचार अध:पतन करवाने वाला होता है। आत्मा की स्वीकृति जैनदर्शन में है। आत्मा का अवबोध हो जाने से वह स्वीकृति अनुभव के स्तर पर आ जाती है। आत्मा के बोध का एक स्पष्ट लक्षण है--पूर्वजन्म । जब पूर्वजन्म या पुनर्जन्म ज्ञात हो जाता है तब आत्मा के विषय में संदेह नहीं रहता। भगवान् महावीर श्रुत से अधिक साक्षात्कार में विश्वास करते हैं | जातिस्मृति की अवधारणा इस विश्वास को संपुष्ट करती है। प्राचीन समय में धर्म में श्रद्धा, आस्था को स्थिर रखने के लिए गुरु उसे जातिस्मृति करवा दिया करते थे। इस संदर्भ में मेघकुमार का उदाहरण हमारे सामने है। महावीर ने मेघकुमार को जाति-स्मृति करवा दी थी। जाति-स्मृति की प्रक्रिया क्या थी, वह वर्तमान में स्पष्ट रूप से उपलब्ध नहीं है किंतु वर्तमान में भी जाति-स्मृति के अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं। उनकी यथार्थता भी असंदिग्ध है। परामनोविज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग इस दिशा में गम्भीरता से अन्वेषण कर रहे हैं। चूंकि विज्ञान प्रयोग पर आधारित प्रक्रिया है। जिसका पुनर्जन्म होता है वह आत्म-तत्त्व अमूर्त है, जो सीधा विज्ञान के अन्वेषण का विषय नहीं बन पा रहा है। अमूर्त ऐन्द्रियिक ज्ञान का विषय नहीं बन सकता। किंतु संसारी आत्मा तैजस एवं कार्मण शरीर से युक्त होने के कारण कथंचित् मूर्त भी है। तैजस शरीर अष्टस्पर्शी पुद्गल स्कन्ध है। वह विज्ञान के उपकरणों का विषय बन सकता है। यदि ऐसा हुआ तो इस क्षेत्र में अभिनव ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं का उद्घाटन हो सकेगा। जातिस्मृति सबको क्यों नहीं होती? पूर्वजन्म की स्मृति सभी प्राणियों को नहीं होती है-ऐसा क्यों होता है ? इस संदर्भ में तन्दुलवेयालिय प्रकरण में समाधान उपलब्ध है। वहां कहा गया है-जन्म और मृत्यु के समय जो दु:ख होता है, उस दु:ख से सम्मूढ़ होने के कारण व्यक्ति को पूर्वजन्म की स्मृति नहीं रहती जायमाणस्स जं दुक्खं मरमाणस्स वा पुणो, तेण दुक्खेण समूढो जाई सरइ नप्पणो।' जाति-स्मृति के लाभ स्मृति संस्कारों के उद्बुद्ध होने से होती है। जाति-स्मरण ज्ञान भी स्मृति का एक प्रकार है। पूर्व जन्म के संस्कार भी विशिष्ट निमित्त को प्राप्त करके ही जागृत होते हैं। विशिष्ट निमित्त के अभाव में संस्कार जागरण नहीं होता। संस्कार जागरण के बिना स्मृति सम्भव 1. अंगसुत्ताणि 3, (नायाधम्मकहाओ) 1/190 2. उत्तरज्झयणाणि 14/19 नो इंदियग्गेज्झ अमुत्तभावा 3. तन्दुलवेयालियं, पइण्णयं (संपा. प्रो. सागरमल जैन, उदयपुर, 1991) 39 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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