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तत्त्वमीमांसा
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द्रव्य शब्द का प्रयोग तो योग, वैशेषिक आदि अन्य दर्शनों में भी तदर्थ हुआ है। बौद्धो में सत्कायदृष्टि के खण्डन का उल्लेख हुआ है। डॉ. टाटिया कहा करते थे कि बौद्ध साहित्य में सत्कायदृष्टि के अर्थ की स्पष्टता नहीं है संभव ऐसा लगता है जैन के अस्तिकाय को ही वहां सत्काय कहा गया है। अस्तिकाय त्रैकालिक अस्तित्व का बोधक है। बौद्ध दर्शन के यहां तो अस्तित्व क्षणिक होता है अतः वे अस्तिकाय के सिद्धान्त का निराकरण करते थे।
अनेकान्त जैन दर्शन का महत्त्वपूर्ण एवं प्रमुख सिद्धान्त है। अनेकान्त की स्वीकृति के कारण कुछ विचारक यह समझते हैं कि जैन में मात्र सापेक्ष सत्य की ही स्वीकृति है अतः कुछ समालोचकों ने सापेक्षता के बिन्दु के आधार पर इसकी समालोचना की है।' जबकि सत्य यह है कि सापेक्ष एवं निरपेक्ष दोनों सत्यों की स्वीकृति के बिना अनेकान्त अवस्थित ही नहीं हो सकता।जैनदर्शन में मात्र सापेक्ष सत्य की स्वीकृति है, इस आधार पर की गई समालोचना को निरस्त करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ का वक्तव्य है कि
"कुछ समालोचकों ने लिखा है कि स्याद्वाद हमें पूर्ण या निरपेक्ष सत्य तक नहीं ले जाता, वह पूर्ण सत्य की यात्रा का मध्यवर्ती विश्राम गृह है किंतु इस समालोचना में तथ्य नहीं है। स्याद्वाद हमें पूर्ण या निरपेक्ष सत्य तक ले जाता है। उसके अनुसार पंचास्तिकायमय जगत् पूर्ण या निरपेक्ष सत्य है। पांचों अस्तिकायों के अपने-अपने असाधारण गुण हैं और उन्हीं के कारण उनकी स्वतंत्र सत्ता है। इसके अस्तित्व, गुण और कार्य की व्याख्या सापेक्ष दृष्टि के बिना नहीं की जा सकती।''2
द्रव्य निरपेक्ष हैं। पर्याय सापेक्षहैं। अस्तिकाय की अवधारणाका विश्व-व्यवस्था मेंमहत्त्वपूर्ण स्थान है।
डॉ. वाल्टर शुब्रींग ने लिखा है-जीव, अजीव और पंचास्तिकाय का सिद्धांत महावीर की देन है। यह उत्तरकालीन विकास नहीं है।' प्रदेश और परमाणु
___ अस्तिकाय के संदर्भ में प्रदेश और परमाणु की विचारणा महत्त्वपूर्ण है। अस्तिकाय की अवधारणा का आधारभूत तत्त्व प्रदेश एवं परमाणु ही है। प्रदेश और परमाणु में अन्तर उसकी स्कन्ध के साथ संलग्नता विलगता के आधार पर ही है वस्तुतः वे दोनों एक समान हैं। स्कन्ध संलग्न परमाणुको प्रदेश कहा जाता है, स्कन्धसे विलगवही अंशपरमाणु कहलाता है। जैन तत्त्व विद्या के अनुसार पुद्गल के चार भेद किए जाते हैं - स्कन्ध, देश, प्रदेश एवं परमाणु । धर्म, अधर्म, आकाश एवं जीव के स्कन्ध, देश एवं प्रदेश के रूप में तीन विभाग किए जाते हैं। पुद्गल के परमाणु होते हैं यह तो सुविदित तथ्य है। इसी तरह अन्य अस्तिकायों 1. Dr. Radhakrishanan, Indian Philosophy (New York) P. 56 2. महाप्रज्ञ, आचार्य, जैन दर्शन और अनेकान्त, (चूरू, 1999) पृ. 29 3. Schubring, Walther, The Doctrines of the Jaina , P. 126 4. जैन सिद्धान्त दीपिका, 1/31, वृत्ति, निरंश: प्रदेश: ........पृथग्वस्तुत्वेन परमाणुस्ततो भिन्नः।
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