Book Title: Iryapathiki Shatrinshika
Author(s): Jaysomgani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatim.org Acharya Shri Kasagarsuri Gyanmandir | चेव सामाइयं काऊण पंचसमिओ तिगुत्ती जहा साहू तहा आगच्छइ, साहुसमीचे पत्तो पुणी वि सामाइयं करेइ, इरियावहियाए पडिकमइ, तो जइ चेइयाई अस्थि तो पढम चेइयाई वंदइ पच्छा पढइ मुणइ वा' तथा तत्रैव पुनः स्थानान्तरेऽप्युक्त-'इह पञ्चविधाचारातिचारविशुद्धयर्थं श्रावकः प्रतिक्रमणं कर ति. तत्र चायं विधि:-प्रथम साध्वादिसमीपे मुखवत्रिका प्रत्युपेक्ष्य विधिना सामायिकं करोतीत्यादि" इत्येवम्भूतप्रभूतसद्भूतपाठपटनेना ठाहतां सामायिकपाठानुगतामेवेर्यापथिकी व्यक्तिचक्रिरे, तथा श्रावकमतिक्रमणचूर्णावपि चन्द्रगच्छीयश्रीविजयसिंहाचार्याः "वंदिऊण प गुरुणो छोभावंदणएण संदिसाविय सामाइयदंडगमणुकट्टइ, जहा-'करेमि भंते ! सामाइयं सावज जोगं पच्चख्खामि जाव नियम गज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं बोरिरामितओ इरियावहियाए पडिकमिय आगमणं आलोएइ, परछा जहाजेई साहुणो बंदिऊग पदइ मुणइ व ति" एवं अनेनापि पाठेन सामायिकपाठादव्यवहितामेवेर्यापथिकी प्रादुरकार्युः, तथा पञ्चाशकचूर्णावपि श्रीयशोदेवसरिभिः "एएण विहिणा गंतूण तिविहेण साहुणे नमिऊण सामाइयं करेइ 'करेमि भंते ! सामाइयं सावज जोगं पच्चख्खामि जाव साहुणो पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं' एवमाइ उपरिक्षण ततो इरियावहियाए पडिक्कमइ, पच्छा आलोइत्ता बंदइ आयरियाइ जहारायणियाए, पुणरवि गुरुं वंदित्ता पडिलेहित्ता भूमि णिविठ्ठो पुच्छइ पढइ वा, एवं चेइएमु वि, असइ साहुचेइयाणं पोसहसालाए सगिहे वा सामाइयं आवस्सयं वा करेइ, तत्थ नवरि गमणं नत्थि. भणइ-जाव नियम समाणेमि त्ति, जो पुण इडिपत्तो सो सबरिदिए जाइ, तेण जणस्स अत्था होइ-आदर इत्यर्थः, आ ढिया य साहुणो सुपुरिसपरिग्गहेणं भवंति, जइ पुण सो कयसामाइओ पडू तया आसहत्थिमाइहि अहिगरणं होज्जा, तं १ "अन्यत्राप्युक्त "मिति मुद्रिवायां । For Private And Personal use only

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