Book Title: Iryapathiki Shatrinshika
Author(s): Jaysomgani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jan Aathana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kasagarsun Gymandir इपिथिकी पत्रिंशिका // 28 // श्री जिन स्तोत्रादि | थुइ-कल्याण ते श्रेय रूपे मानिया ए, माता बे कूखे महावीर तो, सर्व जिन जननी कूखे ए. आयवु कल्याण तिम धार तो // भांखी जिन पडिमा पूजा ए, ऋतुवंती न पूजे देव तो। जिन पूजती ऋतुर्वती थाय ए, पूजे न ते प्रभाविक देव तो // 1 // स्तवन-चोमासु सिद्धाचल करिये रे, मंदिर तलाटीये नित जइये रे / हारे जिन दर्शनना द्वेषो न थइये, जातीडा ! जिन दर्शन सुखकंदो रे / हारे ए तो टाले भवनो फंदो, जातीटा ! जिन दर्शन मत निंदो रे / 11 अमे जयणाथी इहां जासु रे, प्रभु आणा ते दिलमांहे धरमुं रे / हारे तेथी आराधक अमे तरसुं, जातीडा ! चोमासु सिद्धाचल करिये रे, मजा जि०।२। अमे जिन दर्शनना रंगी रे, हूंढकना नहिं अमे संगी रे / हारे किम थइये जिन दर्शनना भंगी?, जातीडा ! चो०म० // 3 / वर्षाले गिरि मुनि जाये रे, कोश अढी | श्रीवीर फरमावे रे / हारे कल्पसूत्र विरुद्ध किम कहावे ?, जातीडा ! चो०1४1 सिद्धगिरि जिनदर्शन सारु रे, ए तो लागे मुझ मन प्यारु रे। हारे जिन दर्शने जिनचंद्र तारु, जातीडा ! चो०म०।। - (थुइ) श्रीसिद्धाचले, आदि जिन आब्या, पूर्व नवाणु वार जी। अजित शांति, चोमासु कीg, गणधर मुनि परिवार जी // दर्शन पूजन, भविजन कीर्छ, देशना अमृत पीधुं जी। चोमासे तलाटी देरे, जिन दर्शन पूजन, नर स्त्री किम निषेधु जी ? // 1 // श्रीजयसोममहोपाध्यायविरचितस्वोपज्ञवृत्तियुतं श्रीई-पथिकोषट्त्रिंशिकाप्रकरणं समाप्तम् For Private And Personal use only

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