Book Title: Iryapathiki Shatrinshika
Author(s): Jaysomgani
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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ईर्यापथिकी HSI पोत्तस्स अंतेणे, पच्छा इरियावहियाए पटिकमइ, पच्छा आलोइत्ता बंदइ आयरियादी जहारायणियाए त्ति, पुणोवि गुरुं वंदित्ता पडि-12
खरतर जय पटत्रिशिका
| सोमीया लेहिता णिविहो पुच्छइ पढइ वा, एवं चेइएमु बि, असति साहूचेइयाणं पोसहसालाए वा सगिहे वा एवं सामाइयं वा आवासयं (आवस्सय) वा करेइ, तत्थ नवरि गमणं णत्थि, भणइ-जाव नियम समाणे मि । जो इडिपत्तो सो किर एंतो सञ्चिदिए एइ तो जणस्स अत्था होइ, आदिता य साहुणो सप्पुरिसपरिग्गहेणं, जइ सो कयसामाइओ एइ ताहे आसहत्थिमाइजणेण य अहिगरणं पवट्टइ ताहे ण करेइ, कयसामाइएण य पाएहिं आगंतवं तेण न करेइ, आगओ साहुसगासे करेइ, जइ सो सावओ ण कोइ उद्देइ, अह अहाभदओ त्ति पूया कया होउ ति भणइ, ताहे पुदरइयं आसणं कीरइ, आयरियाणं उहिया अच्छंति, तत्थ उडेतमणुढेते दोसा भाणियहा, पच्छा सो इद्विपत्तो सामाइयं काऊण पडिकतो वंदित्ता पुच्छइ, सो य किर सामाइयं करतो मउडं ण अवणेति, कुंडलाणि णाममुदं पुप्फतवोलपावारगमादि योसिरइ, अन्ने भणंति-मउडंपि अवणेति, एसा विही सामाइयम्स' इत्यत्र “जइ चेइयाई अस्थि तो पढमं चेइयाई बंदइ" इति वाक्येन सामायिकदण्डकाच्चैत्यवन्दनान्तरिता ईर्यापथिकाप्रोक्ता, तत्र सामायिककरणे चैत्यवन्दनायां सामाचारी विशेषा'नानात्वं' विसदृशत्वमभ्यूह्यं, तद्यथा 'चेइहरसाहुगिहमा-इएमु सामाइयं समो कुज्जा । पणिवायाणंतर साहु-वंदिउं कुणइ सामाइयं ॥२॥” इति गाथाव्याख्यायामाह श्रीनवपदप्रकरणविवरणकृत श्रीमद्यशोदेवोपाध्यायाः "प्रणिपातः-प्रणिपातदण्डको 'नमुत्थु ण'मित्यादिस्तस्मादनन्तरं साधून् वन्दित्वायतीनभिवाय करोति सामायिक, कचिच 'पणिवायाणंतरसाहुबंदणं ति पाठः, तत्र प्रणिपातानन्तरं साधुवन्दनं यत्र सामायिककरणे
॥ ६ ॥ तत्तथेति क्रियाविशेषणं दृश्यं । अयं च विधिः श्रीवसुदेवसरिभिर्व्याख्यातः, परं न प्रायः सामाचार्येवं दृश्यत इति, तदनुसारेणवं व्याख्यामणिपतनं-प्रणिपातः सामान्येन प्रणाममात्र, स च साध्ववग्रहसूचनादत्र साधनामेव द्रष्टव्यः, तस्मादनन्तरं साधुवन्दनं कृखा सामा
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