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मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
कोटिकगण वज्र शाखा में बप्पभट्टि सूरि की परम्परा में यशोभद्रसूरि गच्छ के विद्वान थे ।
देवचन्द्र - सुलसाख्यान आपकी अपभ्रंश में लिखी १७ कड़वकों की रचना है । इसमें सुलसा सती का आख्यान है । भाषा अपभ्रंश है ।
मुक्तक या स्फुट काव्य - १२ वीं शताब्दी के नवांगी वृत्तिकार अभयदेव सूरि कृत्त 'जयतिहुयण' नामक प्रसिद्ध स्तोत्र अपभ्रंश की रचना मानी जाती है किन्तु इसमें मरुगुर्जर के प्रयोग प्रचुर हैं अतः इसका विवरण वहीं होगा ।
योगीन्दु या योगीन्द्राचार्य - इनका समय अनिश्चित है । हरिवंश कोछड़ इन्हें नवीं शती का, राहुल जी इन्हें १० वीं और श्री नाहटा १२ वीं तथा देसाई १३ वीं शताब्दी का कवि बताते हैं किन्तु श्री अ० च० नाहटा के मत से अधिकतर लोग सहमत हैं । आपकी रचना 'परमप्पयासु' या परमात्मप्रकाश एक आध्यात्मिक रचना है जिसे आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये ने सम्पादित करके प्रभावक मंडल, बम्बई से सन् १९३७ में प्रकाशित कराया है । यह ग्रन्थ दो अधिकारों में विभक्त है । योगीन्द्र का कोई शिष्य भट्ट प्रभाकर आत्मा-परमात्मा सम्बन्धी प्रश्न आचार्य से पूछता है उन्हीं का उत्तर देने के लिए आचार्य ने यह रचना की है । इसमें बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा आदि का विवेचन किया गया है । मोक्ष, समाधि, समभाव आदि का वर्णन है । मोक्ष का वर्णन कवि इस प्रकार करता है :" जहिं भावइ तहिं जाहि जिय जंभावइ करि तंजि । म्बइ भोक्खु णं अस्थि पर चित्तह शुद्धिण जंजि ॥"
अर्थात् चित्तशुद्धि ही मोक्ष का एकमात्र साधन है । इसकी भाषा सरल, सुबोध ओर स्पष्ट है । विभक्तिसूचक प्रत्ययों के स्थान पर कहीं-कहीं परसर्गों का प्रयोग उसकी अग्रगामिता का सूचक है । शब्द समूह में 'पथडा' ( सिद्धि का मार्ग ) आधुनिक भाषाई प्रवृत्ति है । लेइ ( लेना ), लेति, देखइ, जाइ, बुज्झई, लग्गइ, रुक्खे ( वृक्ष से ) कोइ, जोइ ( देखना ) आदि शब्द पुरानी हिन्दी या मरुगुर्जर के भी शब्द हैं । इनकी दूसरी रचना योगसार या दोहासार भी परमात्म प्रकाश के साथ ही डॉ० उपाध्ये द्वारा सम्पादित - प्रकाशित हो चुकी है। इसका विषय इसके नाम से ही स्पष्ट है, नमूना देखिये :"आउ गलइ गवि मणु गलइ गवि आसा हु गलेइ । मोह फुरइ गवि अप्प हिउ इम संसार भइ ॥ ४९ ॥
आयु क्षीण होती जाती है, किन्तु मन और आशा क्षीण नहीं होती; मोह बढ़ता न कि आत्मचिन्तन; फलतः जीव भव - भ्रमण करता है । इसके अनेक दोहे स्पष्ट मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी के प्रतीत होते हैं अतः वहाँ भी इनका उल्लेख किया गया है किन्तु ये दोनों के मध्य की कड़ी हैं ।
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