Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 601
________________ ५८४ मह-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास के नमूने अवश्य प्राप्त होते हैं; किन्तु तथ्यों की तोड़-मोड़ भी पर्याप्त मात्रा में की गई है। विगत-इसमें किसी राजा-सामन्त या अन्य महापुरुष का वंश परिचय और इतिवृत्त प्रस्तुत किया जाता है, जैसे 'मेवाड़ रा भाखरा री विगत' या 'सिसौदिया चडावतां री साखरी विगत' इत्यादि। ये रचनायें प्रायः परबर्ती काल की हैं अतः इनका विवरण एवं उद्धरण आगे देना ही उचित होगा। सिलोका-ये भी गद्य-पद्यमय होते हैं। विवाह के अवसर पर साला अपने बहनोई की बुद्धि-परीक्षा के लिए श्लोक पढ़ता है और उनसे उसका अर्थ पूछता है या वैसा ही दूसरा श्लोक पढ़ने का आग्रह करता है। इसलिए इस में पद्य के साथ-साथ साले-बहनोई के संवाद के रूप में बोलचाल की ठेठ भाषा के नमूने भी उपलब्ध हो जाते हैं। इनका उद्धरण जैन गद्य रचनाओं के साथ दिया जायेगा। ___मरुगुर्जर जैन गद्य-गद्य के विकासक्रम की दृष्टि से तथा वैविध्य, संख्या और साहित्यिकता की दष्टि से जैन गद्य अन्य लोगों द्वारा लिखित गद्य की अपेक्षा अधिक सम्पन्न और महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से जैनधर्म के सिद्धांत, दष्टांत और उदाहरण तथा सिद्धान्तों की व्याख्या आदि की गई है। पद्यों को समझाने के लिए भी टिप्पण के रूप में गद्य का प्रयोग किया गया है जैसे ढंढणकूमारकथा में प्रारम्भ में श्लोक देकर उसका भावार्थ और दृष्टान्तस्वरूप कोई छोटी कथा गद्य में देकर उसका आशय स्पष्ट किया गया है । पहले कह चुके हैं कि इस प्रकार का गद्य साहित्य १३वीं शताब्दी से ही मिलने लगता है। इन प्राचीन गद्यावतरणों का प्रतिनिधि संकलन है 'प्राचीन गुजराती गद्य संदर्भ' जिसके सम्पादक मुनि जिनविजयजी हैं। यह गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद से सं० १९८६ में प्रकाशित है। सर्वप्रथम इसी संकलन से कुछ महत्वपूर्ण गद्यखण्ड प्रस्तुत किए जा रहे हैं। 'प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह' के अन्त में भी कुछ इसी प्रकार के गद्य खण्ड संकलित हैं उनमें से प्रायः सभी गद्यसन्दर्भ में भी संकलित हैं। इन संकलनों में १३. वीं शताब्दी की एक-दो रचनाओं के अलावा अधिकतर रचनायें १४वीं या उसके बाद की शताब्दियों की हैं। इस समय तक जैन काव्यसाहित्य का विकास पर्याप्त रूप से हो चुका था और अन्य भाषाओं के साहित्यिक विकासक्रम के अनुसार ही मरुगुर्जर में भी काव्य का विकास हो चुकने पर गद्य की रचना प्रारम्भ हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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