Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 615
________________ ५९८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस गद्यखंड के वाक्य छोटे, भाषा प्रवाहमय और प्रसादगुण सम्पन्न है। यह भाषा शैली मरुगूर्जर गद्य भाषा के विकसित अवस्था की सूचक है। लेखक केवल कथा-कहानियाँ ही नहीं अपितु गम्भीर विषयों को भी उतनी ही सरलता एवं स्पष्टता से व्यक्त करने में सक्षम है। एक उदाहरण प्रस्तुत है । आ० हेमचन्द्र ने गृहस्थधर्म के गुणों का वर्णन करते हुए लिखा है : 'अजीणे भोजनत्यागी काले भोक्ता च सात्म्यतः । अन्योन्या प्रतिबन्धेन त्रिवर्गमपि साधयन् ।' आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरि इसकी शब्दशः विवेचना करते हुए लिखते हैं : _ 'अजीणे-पाछिलइ जिमइ आहरि अणजरिई परिपाकि आव्या पावइ नवउ आहार न जिमइ, ते कहीइ मांदड थाइ नही । प्राहिइं जेह भणीइम कहिउं छइ- 'अजीर्ण प्रभवा रोगाः 'रोग सघला इ अजीर्णतउ ऊपजई। नीरोग पणउ ते धर्मनउ आंग । एह भणी ए बात कही।1 ___ आपके नाम पर अनेक रचनायें प्रचलित हैं जैसे नवतत्त्व बाला० आदि। इसका रचनाकाल सं० १५०२ बताया जाता है जबकि आचार्य सोमसुन्दरसूरि का स्वर्गवास सं० १४९९ में ही होना निश्चित माना जाता है अतः यह रचना किसी अन्य सोमसुन्दर की हो सकती है। आपके कई शिष्यों ने भी अनेक गद्य रचनायें की हैं। हो सकता है कि कुछ दूसरे लेखकों या शिष्यों की रचनायें भी आपके नाम से प्रचलित हो गई हों। आपके संबन्ध में विस्तृत सूचना काव्यखंड में दी गयी है। आप मरुगुर्जर के अतिरिक्त संस्कृत, प्राकृत आदि कई भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान् और नाना विषयों के गम्भीर अध्येता थे। आपने गद्य और पद्य में कई भाषाओं में प्रभूत साहित्य लिखा है। अतः आप निस्संदेह एक युगनिर्माता साहित्यकार थे और यदि इस कालावधि को सोमसुन्दर युग के नाम से अभिहित किया जाय तो उचित ही होगा। इसी कालावधि में खरतरगच्छ के भी कई महान् आचार्यों ने मरुगुर्जर साहित्य भी महती श्रीवृद्धि की है; अतः इस इतिहासग्रन्थ में किसी कालावधि के लिए किसी व्यक्ति विशेष के आधार पर कोई नामकरण नहीं किया गया है। आपके शिष्यों का समुदाय विस्तृत था जिनमें मुनिसुन्दरसूरि के अलावा जयचन्दसूरि, भुवनसुन्दरसूरि, जिन१. प्राचीन गुजराती गद्य सन्दर्भ-पृ० १२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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