________________
मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
उस समय देश के पश्चिमी भाग विशेषतया गुजरात में गुर्जरों का राज्य था। इनके कारण ही लाट देश का नाम गुजरात पड़ा । मूलराज ने सन् ९४१ ई० के आसपास यहां चौलुक्य राज्य की स्थापना की थी। इस वंश में कर्ण का पुत्र जयसिंह सिद्धराज (सं० १०९४ से ११४२ तक.) बड़ा प्रतापी हुआ । आ० हेमचन्द्र के ग्रन्थों में इसका विवरण उपलब्ध है। इसने गिरिनार के आभीर राजा खंगार को पराजित किया। मेरुतुग ने खंगार या नवधन के ऊपर जयसिंह के अभियानों का प्रभावशाली वर्णन किया है। इसका कोई औरस पुत्र नहीं था इसलिए भीम की रखैली रानी बकुला देवी की सन्तान-परम्परा में उत्पन्न कुमारपाल को आ० हेमचन्द्र और अन्य प्रभावशाली व्यक्तियों ने मिलकर गुजरात का राजा बनाया। यह आ० हेमचन्द्र का शिष्य था और इसके राज्यकाल में गुजरात जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र हो गया। कुमालपालचरित, प्रभावकचरित, प्रबन्धचिन्तामणि आदि ग्रन्थों में इसके पर्याप्त उल्लेख मिलते हैं। परमारों, यादवों और कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमणों से चालुक्य वंश बाद में छिन्न-भिन्न हो गया।
गुजरात के समीपवर्ती प्रदेश मालवा में परमारों का शासन सन् ७९० ई० के आसपास स्थापित हुआ था। सीयक का पुत्र द्वितीय वाक्पतिराज मुंज इस वंश का प्रतापी राजा हुआ। मेरुतुङ्ग ने मुज प्रबन्ध में मुज-तैलप के संघर्ष का ऐतिहासिक विवरण दिया है। काव्यनिर्णयकार धनिक और धनंजय (दशरूपककार), पद्य गुप्त और वसंताचार्य आदि कई विद्वान् उसके राजदरबार की शोभा बढ़ाते थे । वह स्वयम् भी उच्चकोटि का कवि था। उसके बाद इस वंश में राजा भोज (१०११-१०४६) प्रसिद्ध शासक और महान् विद्या-साहित्य प्रेमी हो गया। इसके सम्बन्ध में जैन लेखकों के अलावा अलबरुनी और अबुल-फजल आदि मुसलमान लेखकों के वर्णन व अन्य अभिलेख प्राप्त हैं जिससे मालूम होता है कि उस समय भोज की राजधानी धारानगरी विद्या, कला, साहित्य-संस्कृति का केन्द्र बन गई थी। दामोदर मिश्र (हनुमन्नाटककार), धनपाल (तिलकमंजरीकार) आदि उसके सभापण्डित थे। वह स्वयम् विद्वान् था और विद्वानों का बड़ा आदर करता था। उसने सरस्वती कंठाभरण, शृङ्गारप्रकाश, कूर्मशतक, चंपू रामायण, शृङ्गारमंजरी और तत्त्वप्रकाश आदि अनेक ग्रन्थ रचे थे। इन राजाओं के समय इस प्रदेश में सभी धर्म विशेषतया जैनधर्म की स्थिति अच्छी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.