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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास और बुन्देलखण्ड में जैन धर्म को राज्याश्रय प्राप्त था, अतः इन स्थानों का धार्मिक विवरण प्रमुख रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है।
बुन्देलखंड में कलचुरी नरेशों के समय हिन्दू धर्म और जैन धर्म का समान रूप से प्रचलन था। इन्हीं राजाओं ने एलिफैन्टा के गुफा-मंदिरों का निर्माण कराया। जैनधर्म कलचरी नरेशों के राज्य में फल-फूल रहा था। अनेक जैन मन्दिरों का निर्माण हुआ था। सोहागपुर में कई जैन मन्दिर थे। जबलपुर में जैन तीर्थंकरों की प्रतिमायें मिली हैं जिनसे इस धर्म की अच्छी स्थिति का अनुमान किया जा सकता है। बुन्देलखंड में जैन मतावलम्बियों की संख्या अवश्य अल्प थी क्योंकि इस पिछड़े प्रदेश में सामान्य जनता के लिए शिवोपासना अधिक सुविधाजनक थी।
मालवा में जैनधर्म की स्थिति-स्कन्दपुराण, प्रबन्धचिन्तामणि, नवसाहसांकचरित, विक्रमांकदेवचरित, भोजप्रबन्ध आदि ग्रन्थों के आधार पर मालवा के नरेशों की धार्मिक रुचि और नीति का अच्छा परिचय मिलता है । इससे पता चलता है कि इस युग में मालवा जैनधर्म के प्रमुख केन्द्रों में था। जैनाचार्यों को राज्य संरक्षण प्राप्त था और उन्होंने वहाँ जैनधर्म का अच्छा प्रसार किया था। अनेक जैन मन्दिर बनवाये गये थे। ११वीं शताब्दी में कई जैन मन्दिर मालवा में बने । मुज की राज्यसभा में धनेश्वर, भोज की सभा में धनपाल और नरवर्मा के दरबार में भी जैन विद्वानों-आचार्यों की उपस्थिति का पता चलता है । आबू जैनधर्म का प्रमुख तीर्थ बना । भोज का सेनापति कुलचन्द भी दिगम्बर जैन था। देवभद्र नामक जैन साधु का भोज बड़ा आदर करता था। धारा में जिनबिहार था जहाँ नयनन्दि नामक प्रसिद्ध लेखक ने अपना सुदर्शनचरित लिखा था। सारांश यह कि उस युग में मालवा जैन धर्म, विद्या और साहित्य का एक प्रमुख केन्द्र था।
गुजरात में जैनधर्म को स्थिति-गुजरात के चौलुक्य राजवंश ने जैनधर्म को पर्याप्त सम्मान एवं संरक्षण प्रदान किया। भोज के पश्चात् मालवा का राज्य भी चौलुक्यों ने हस्तगत कर लिया। पहले कहा जा चका है कि सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल आ० हेमचन्द्र और जैनधर्म का बड़ा आदर करते थे । सिद्धराज ने गिरनार में जैन महातीर्थ की स्थापना कराई । नेमिनाथ के मन्दिर का निर्माण और कुमारपाल द्वारा जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों तथा मंदिरों की प्रतिष्ठा, राज्य की ओर से अनेक
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