Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 579
________________ ५६२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अवट अन्याइ जूवटी मेहलु नरगि प्रियाण, श्वेतवती नगरी तिहां, वरतइ पाप विनाण।' अज्ञात कवि कृत 'साधुवन्दना' २५१ कड़ी की मध्यम श्रेणी की रचना है। इसका प्रथम छन्द इस प्रकार है :-- 'वन्दिय गुरुआ सिद्ध अनन्त, तीर्थंकर गणधर भगवन्त, करजोडी ऋषिवन्दन करू, जिम लाभइ चारित्र अति खरू। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार है : 'काल अनादि अनन्ते भवे, ते अपराध खमा सवे, सूत्र विरुद्ध जे काइ होइ, शुद्ध करु गीतारथ सोइ ।२५१।२ अज्ञात कवि कृत 'जीवदया चौपई' ३० कड़ी की छोटी रचना है । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखिये : 'पहिलूप्रणम् वीर जिणंद, तेणइ तठइ होइ परिमाणंद, चउवीसमउ तीर्थंकर देव, सुरनर इंद्र करइं पय सेव । भाव और भाषा के उदाहरणार्थ अंन्तिम दो पंक्तियां भी प्रस्तुत है :--- 'इमजाणी जीव रक्षा करउ, जइणाधर्म सूधउ आदरउ, कुगुरु भ्रम छोडउ मिथ्यात, प्रवचन वचने प्रीछु वात ।३०।। अज्ञात कविकृत 'ऋषिदत्तारास' की रचना सं० १५०२ में हुई किन्तु इसके लेखक या इस रचना से संबन्धित विवरण भी अज्ञात हैं । _अज्ञात कविकृत 'समकितगीत' (गाथा ५) और सम्यक्त्व गीत (गाथा ८) के भी विवरण उपलब्ध नहीं है। इनके उद्धरण श्री मो० देसाई कृत जे० गु० क० भाग ३ पृ० ४९५ पर उपलब्ध हैं। अज्ञात कविकृत 'हीयाली' का उल्लेख श्री देसाई जी ने पृ० ४९६ पर किया है (जै० गु० क० भाग ३)। हीयाली एक प्रकार का बुझौवल है । इसकी दो पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत है : 'सकल नारि सुकलीणी सुणीइ, गुणवंती वखाणुं जगिजाणुं रे, जे देखइ तेन चित्त मोहि, सती सिरोमणि जाणुं रे।' १. श्री देसाई-जे० गु० क०-भाग ३, पृ० ६४५ २. वही खण्ड २ १० १४९९ ३. वही, पृ० १५०० ४. वही, ४५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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