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१४८]
राजस्थान पुरातत्वान्वेपण मन्दिर
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क्रमांक ग्रन्थाङ्क
पत्र
ग्रन्थनाम
कर्ता
लिपिसमय
| संख्या
विशेष
२४६४ / रसतरगिणी ५१ | ३४१४ रसतरंगिणी
भानुदत्तमिश्र सं० । १८८६ भानुदत्तमिश्र
|, १७१४
४७ कृष्णगढ़ में लिखित । १४ डीडवाणपुर में
लिखित । द्वितीय
पत्र प्राप्त। १२६ रचना स० १८४१ ।
भानुदत्तमिश्र
"
१६वीं श
५२ २०५ | रसतरगिणी सटीक
त्रिपाठ | २२४१ / रमनिवध
खुसराम
ब्रहि० १६१४
५४ २२५१ रसनिवध
खुमराम
ज.हि. १६१४ |
१२ स. १६१४ में अज
मेर में रचित, और स्वयकर्ता द्वारा लिखित, कर्ता ने अन्त में अपने दो नामो का इस तरह पृथक्करण किया है 'न्यात जात व्यवहार मे मगनीराम कहात । कविताछ द प्रवध मे
कविखुसराम विख्यात' १८ | स १६१४ मे अज| मेर मे रचित और कर्ता द्वारा लिखित प्रशमादर्श, कर्ता कवि
वृदजी के वंशज हैं। १२ स० १६१४ मे
रचित, प्र थकार के हस्ताक्षर, कृष्णगढ
में लिखित । ३० स० १८४६ मे रचित
प्रथमादर्श है । ग्रथकार प्रसिद्ध कवि वृन्दजी के वशज
५५ २२८६ रसनिवध
खसराम
"
१६१४
५६ २२५० । रसप्रबोध
दौलतकवि
"
| १८४६
५७, २३६६ | रसग्रवोध
दौलतकवि
"
| १८४६
३० | सं. १८४६ मे कृष्ण
दुर्ग मे रचित प्रथमादर्श।