Book Title: Hastlikhit Granth Suchi Part 01
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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३०० ]
क्रमांक मन्थाक
८४४
८४५
= ४६ २२१ =
(१)
१=२३
३५५०
८४७
८४८
८४६
८५०
८५१
८५३
८५४
६५५
=५६
३५७५ | सीमधरजिन वीनति
(8)
२३७४
(१६) स्तवन
मन्थनाम
८५२ | १८८६ | सुहागरेंनि
(६)
सीमधरजिनस्तवना दि
=६०
सुखसंवाद
सुदर्शन ऋपिसज्झाय
सुदर्शन सज्झाय
(१३)
२८३२ | सुदामा की बाराखडी
(४)
२२१७ सुमति जिनस्तवन
(३)
३५१० सुरप्रियऋपिसज्झाय (३)
२३६८ | सूरजजी की सिलोको
(2)
=५७ ११२२ सूरजनी स्तुति कवित्त
1
(३७)
=५ ११६५ सूर्यजीरो सिलोको
३५६२ | सूरजजी रो सलोको -
(३)
३२५५ | सूरज देवतारो सलोको ३५५७ सूरज देवतारो सलोको (३)
1
८५६ ३५४६ सेरसिंहमंडतीया आदि।
(2) अनेक राजाओं का
पचरा छ दि
J
राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर
लिपि -
समय
१७६ । स्वभनपार्श्वनाथ
( १ )
उत्पत्तिम्नव
कर्त्ता
भक्तिलाभ
उपाध्याय
सुखदेव
हकीर्ति
खेमुनि
लक्ष्मीरत्न
सवाई प्रतापसिहजी
सेवग
कुशललाभ
भाषा
रा०० २०वीं श ३०-३२
१६वीं श. ८०से८३
व्रज
36
राज०
रा०० १७७६ १६वीं श-८६
"
हि०
रा०
29
रा०गू० १८वीं श ३ रा
३ से ४
::
"
व्रज
रा०
"
11
रा००
पत्र
सख्या
"
१-१०
१७७४ ८५-८८
34
m
१८५३
१६वीं श . ३७से ३६
२३ से २४ रचना सं० १८४६ ।
१६५६ १७-१८
१
१८०१ १८वींश ७२ वा
१६वींश ३६ वा
१३
१६वींश. ६-१०
विशेष
१६११ १-२
गुटका है। पत्र ४ से ३८ तक जैन स्तवनादि हैं ।
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