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आमुख
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लई संस्कृतभक्तोनी दृष्टिए जे प्रयोगो शुद्ध जणाया तेमने तेमांथी लौकिक संस्कृतनी घटना करनाराओए वीणी, जुदा तारवी, भाषानी जे संकलना करी तेनुं नाम लौकिक संस्कृत भाषा.
५४ धारो के हजारो वर्षोथी बंध पडेली एवी रत्नोनी एक मोटी वखार होय, तेमां घाटघुट विनानां अने चित्रविचित्र वर्णवाळां ए माटे रत्नोनी अनेक प्रकारनां रत्नो भरेलां होय, तेमांथी साधारण वखारनुं उदाहरण लोको ए घाट विनानां रत्नो लई पोतानुं काम चलावे अने बीजा केटलाक लोको तो ए चित्रविचित्र रत्नोने पण ओपीओपीने पोताना काममां ल्ये एटले एनो अर्थ एम तो न ज थाय के पेलां घाटघुट विनानां रत्नोमाथी ए ओपेलां रत्नो नवां ज नीपज्यां छे. ए न्याये अहीं लौकिक संस्कृतनी घटना करनारा ओए पोताने गमी गयेल प्रयोगोने वीणवानी दृष्टिए ( लौकिक संस्कृतनी घटना करवामां ) आदिम प्राकृतनो उपयोग कर्यो होय, एटला मात्रथी कांई एम न कही शकाय के प्राकृत भाषा संस्कृतनी जननी छे. खरी रीते तो आदिम प्राकृत अने लौकिक संस्कृत ए बे प्रवाहो जुदा जुदा वह्या छे तो पण ते बन्नेनुं मूळ कोई एक प्रवाहमां छे एमां शंका नथी अने एम छे माटे ते बन्ने प्रवाहोना शब्ददेहनी घटना अने विद्यमान वैदिक शब्ददेहनी घटना परस्पर आश्चर्यकारक रीते मळती आवे छे.
५५ व्यापक प्राकृत अने वैदिक भाषा ए बन्ने वच्चे गाढ संबंध छे एटले तेनो अर्थ एवो नथी ज के व्यापक प्राकृत अने लौकिक संस्कृत वच्चे को संबंध नथी.
ए बन्ने एक प्रवाहमांथी नीकळेली होवाथी मादीकरी नथी पण बे बहेनो छे. लौकिक संस्कृतनुं क्षेत्र परिमित होवाथी ते नानी बहेन छे अने प्राकृतनुं क्षेत्र विशाळ होवाथी ते मोटी बहेन छे. बे बहेनोमां जेवो
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