Book Title: Gujarati Bhashani Utkranti
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Mumbai University

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Page 641
________________ ६१८ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति यद्यपि शुक योगीनो अंतर्य तेज गूढ महिमाय । तेह्वां लक्षण जाणे मुनिवर सर्वे साहमा जाय ॥ ६८ ॥ विष्णुरात आव्या अतिथिनी पूजा कीधी सार । मस्तक नामी आत्मनिवेदन कीबूं नृप निरधार ।। ६९ ॥ पूज्या अरच्या शुकजी आसन्य बेठा अंतर्यामी । पाछल्य आव्यां अबला बालक नाठां विस्मय पामी ॥ ७० ॥ मोटा मध्ये मोटो मुनिवर तेह सभामां पेठो। ब्रह्मऋषि राजऋषि सुरऋषि मंडलमध्ये बेठो ॥ ७१ ।। मुनिजनकेरा मंडलमध्ये अतिशोभ्यो भगवान । ग्रहतारानक्षत्र विच्ये जाण्ये ऊग्यो इंदुसमान ॥ ७२ ॥ जेहनी बुद्धि अकुण्ठित ते मुनि आसन्य बेठा शांत । वैष्णवराज परीक्षित तेने अति पाम्यो अभ्रांत्य ॥ ७३ ॥ कर जोडी शिर मोडी कीधो मुनिवरने परणाम । विनयवचन मन स्थिर राखीने पूछे परीक्षित आम ॥ ७४ ॥ अहो अम्यो त्यां अधुना ब्रह्मन थैने क्षत्रीराज । सज्जन अमने सेवे एहवा अम्यो थया छू आज ।। ७५ ॥ कृपा करीने अतिथिरूपे आव्या छो अम घेर्य । ते माट्ये अम्यो तीरथ कीधा सर्वोपरि करी पेर्य ।। ७६ ॥ जेहनूं स्मरण कर्येथी नरनां मंदिर पावन थाय । तेहतूं दर्शन स्पर्श पदोदक कोण कहे महिमाय ।। ७७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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