Book Title: Gujarati Bhashani Utkranti
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Mumbai University

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Page 680
________________ उपसंहार ६५७ तरि नान्हे ऊपरि नान्हे विचि पूनु कर सु साटविउ आहि । अइस दीसतु हइ जइसा पूनम का चांदु। अध कोदव के,चावर खाइयहि, गीतु गाइयइ । सुठि नीके वानिए वसहिं । कइसे वानिए ।" (४) " मरहठी तरि हा या जनमु आवागमणु कवणा गति न होइ रे बप्पा । तरि भविक जनत्तं पुच्छिसि भई अनिक देस देशांतर चातुर्दिशा मागु मया देखुणी। अपूर्व सर्ब तीर्थाचा भेटु गीत राचु गीतल्लास कट समस्त गूमटा । तरिया इकि नहीं सागिन पुरी सत्तरि सहस्र सहस्र गुजराताचा भीतरि गिरि सेतुजंचा ऊपरि । श्रीऋषभनाथाचा रंगमंडपि अनिक गीत ताल एकाग्र चित्तुं कारुणी। निजकरकमलाचा द्रव्य उपार्जनी । परमेसर वीतरागाचा भवनि वेचनी पुनरपि जनमुनिवारिणे अहं एवमेव सत्यं।" __ आ बाबत देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा अशोकनां शासनोने प्रधानतः लक्ष्यमा राखी · आर्यावर्तनी सर्व गम्य लोकभाषा' संबंधे एक निबंध लखवा जेवो छे. ए विशे अहीं विशेष लखतां विषयांतर थवाना भयने लीधे आटलेथी ज अटकुं छं; परंतु मारी खात्री थई छे के आपणे त्यां समग्र देश समझी शके एवी एक लोकभाषा जरूर हती अने वर्तमानमां पण छे; परंतु आपणु पारतंत्र्य, ए हकीकत कळवा देतुं नथी, एथी परिणामे आपणे बधा भारतवासी भाषादृष्टिए अभिन्न-एक-छतां परस्पर विरोधपोषक भिन्नताने अनुभवी रह्या छिए. आ रीते उक्त उदाहरणोथी एम स्पष्टपणे मालूम पडे छे के पूर्व भारत, दक्षिण अने आपणो गुजरात ए बधा वच्चे एक एवी लोकप्रतिनिधिक लोकभाषा–प्राचीन बोली-प्रवर्तती हती अने तेने ते दरेक देशनो समाज समझतो हतो त्यारे आ सुवर्णयुगमां आपणुं ए जातनुं भाषा ४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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