Book Title: Gujarati Bhashani Utkranti
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Mumbai University

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Page 686
________________ परिशिष्ट :'छे' क्रियापदनो वृत्तांत आपतां आगळ जणावी गयो र्छ के 'अस्' ना अंत्य 'स' नो 'छ' थवाथी 'अछइ' रूप 'छे' नी विशेष 4 थाय अने तेमांथी 'छे' पद नीपजे. हेमचंद्र ‘अस्' चर्चा " - ‘अत्थि' रूप ज आपे छे एटले 'अस्' ना 'सू' नो 'छ' कल्पवो के केम ए एक प्रश्न छे. 'अत्थि' ने बदले एक स्थळे 'अत्थई' रूप वपरायेलुं छे. मलधारी राजशेखरसूरिए रचेला 'नेमिनाथफागु' मां “राइमए-सम तिहु भुवणि अवर न अत्थइ नारे । मोहणविल्लि नवलडीय उप्पनीय संसारे ॥७॥" ( अर्थात्-~-त्रण भुवनमां राजिमती जेवी बीजी कोई नारी नथी. ए, संसारमा नवल एवी मोहन वेल ऊपजेली छे.) ए गाथामां 'छे ना अर्थमां 'अस्थइ' क्रियापद वपरायेलं छे. मारी समझ प्रमाणे ए मुद्रणदोष पण नथी. ज्ञानेश्वरीगीतामां अनेक स्थळे 'छे ना अर्थमां ज 'आथी' के 'आथि' रूप वपरायेलुं छे. चालु मराठी- 'आहे' रूप 'अस्' ना 'स्' नो 'ह' थईने नथी आव्यु परंतु 'आथी' ना 'थ' नो 'ह' थईने आव्युं छे अने 'आहे' लाववानो ए क्रम मने विशेष उचित जणाय छे. ते ज प्रमाणे 'अस्' ना 'स्' नो 'छ' न करतां ‘असू' ना उक्त 'अत्यइ' ऊपरथी 'स्थ' नो 'च्छे थई 'अच्छई' अने तेमांथी अछइ-छह-छे एम 'छे नी व्युत्पत्ति करीए तो सरळ क्रम लागे छे. तवर्गनो चर्ग थवानुं सुप्रतीत छे अने प्राकृतमा 'थ' नो 'छ' परिणाम सूत्रसिद्ध छे. मिथ्या-मिच्छा, तथ्य–तच्छ, पथ्य-पच्छ, सामर्थ्य-सामच्छ. (८-२-२१-२२ हैम०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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