Book Title: Gujarati Bhashani Utkranti
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Mumbai University

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Page 673
________________ ६५० गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति 'त्रा' प्रत्यय लागीने ‘गुर्जरत्रा' शब्द बन्यो होय ए हकीकत मने ठीक ठीक रीते गळे ऊतरती नथी. ए ज रीते ' गुर्जरराष्ट्र' ऊपरथी पण 'गुजरत्ता' शब्द आवी शकतो नथी. “गुर्जरराष्ट्र' मांनो 'र' तो वाग्व्यापारने बळे कदाच लोप पामी जाय, परंतु अंत्य 'ष्ट' नो ‘त्त' केम थाय ? चाग्व्यापारने परिणामे 'टु' थवो जोईए. ए ज रीते 'गुर्जरधरा' ऊपरथी पण 'गुर्जरत्रा' नथी आवी शकतो. 'गुज्जरत्ता' ए कोई देश्य पद छे अने संस्कृतमां तेनुं अनुकरण 'गुर्जरत्रा' थयेलुं छे. 'सुलतान' नुं संस्कृत 'सुरत्राण' करवामां आव्युं छे तेम कोई संस्कृतना भक्ते 'गुज्जरत्ता' - 'गुर्जरत्रा' बनान्यु लागे छे. अथवा संभव छे के देशवाचक 'कुशावर्ताः' 'आर्यावर्ताः' 'ब्रह्मावर्ताः' नी पेठे ‘गुर्जरावर्ताः' ऊपरथी 'गुजरावत्ता-गुजरायत्तागुज्जरत्ता' आव्युं होय अने ते ऊपरथी कोईए ‘गुर्जरत्रा' कल्प्यु होय. स० नरसिंहरावभाई कहे छे तेम 'गुजरत्ता' नो अंतिम 'त्ता' के 'अत्ता', 'ठाकोर' नी 'ठकरात' जेवो छे. तेमनुं आ कथन ज्यां सुधी 'ए माटे विशेष बाधकप्रमाण न मळे त्यां सुधी तो मने स्वीकारवा जेवू लागे छे. ___ चीनी प्रवासी ह्युएनत्सिंगे पोतानी जबानमा ‘कियुचेलो' शब्द 'गुजरात' देशने माटे वापरेलो छे; एथी एम जणाय छे के ते वखते देश माटे 'गुर्जर' शब्द ज विशेष प्रसिद्ध हशे नहीं के-'गुर्जरत्रा' के 'गुजरत्ता'. लगभग सातमा सैकाना 'वसुदेवहिंडि' नामना प्राकृत ग्रंथमां 'पेढिया' ना मथाळावाळा प्रकरणमां 'द्वारिका' नगरीनुं सुंदर वर्णन करेलुं छे. तेमां जणावेलुं छे के- "अत्थि पच्छिमसमुद्दसंसिया निउणजणवन्नियगुणा चत्तारि जणवया। तं जहा-आणहा कुसहा सुरहा सुक्करवा त्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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