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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
‘वाहला' बहुवचन छे, तेनुं मूळ 'वाहल' पद 'वाहली' शब्द साथे संबंध धरावे छे. संभव छे के मूळ 'वह-वहेवू' धातु साथे वाहली, वहोलो के वहेळा पदनो संबंध होय. __ चमत्कृत-चमक्किय–चमकिय-चमकी ए क्रम 'चमकिय' नी निष्पत्तिनो छे.
‘वधावी' ना मूळमां प्रेरणासूचक प्रत्यय साथेनो 'वृध्व धर्बु' धातु छे. वृध्-प्रेरणा अर्थ-वर्ध-प्रा० वद्धाव. ते ऊपरथी भूतकृदंत ‘वद्धाविया' अने ते द्वारा ‘वधावी.' भाषामां 'लेको' शब्द स्त्रीओनी विशेष प्रकारनी चेष्टानो सूचक छे. लेको
प्रस्तुत 'लहकंती' पद 'लेका करती'ना भावने
' दर्शावे छे. एना मूळमां · लस्' धातु द्वारा बनेलो 'लसक' शब्द छे. 'लसकं करोति लसकयति' ए रीते नामधातुरूप 'लसक' ऊपरथी वर्तमान कृदंत 'लसकयन्ती' अने ते द्वारा 'लहकंती' नीपजे छे. अथवा विशिष्ट प्रकारना नृत्य माटे वपराता 'लास्य' शब्दने 'क' लगाडीए तो 'लास्यक' थाय. 'लास्यक 'नुं नामधातु तरीकेनुं 'लास्यकयति' आनुं वर्तमानकृदंत 'लास्यकयन्ती' ते ऊपरथी पण 'लहकंती' पद आवे. मूळ बन्नेमां ‘लस्' धातु समझवानो छे. जोडंती-जोडती — युक्त' ऊपरथी जुत्त-जुट्ट-जुड्ड-जोड-जोडंती. ए
रीते ' युक्त' मांथी 'जोड' धातु नीपजावी तेनुं
वर्तमानकृदंत ‘जोडंती.' हिंदीमां — जोडवा' अर्थ माटे — जुट' शब्द प्रचलित छे, आ कल्पना क्लिष्ट जणाती होय तो संबंधवाची (“ यौड़ संबन्धे " धातुसंग्रह भ्वादि०) 'यौड्' धातु ऊपरथी प्रा० 'जोड' अने तेनुं वर्तमान कृदंत ‘जोडंती.' एम बन्ने रीते 'जोडती' ने नीपजावी शकाय एम छे.
जोडंती
वर्तमानकृदंत 'जाडता.
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