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चौदमो अने पन्दमो सैको
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वैदिक हो के जैन हो वा अन्य कोई हो परंतु जे कोई गुजराती छे तेनी भाषामां भेदभाव नथी. विषयने लीधे भाषामां जे विशेषता आवे ते समझी शकाय एम छे. परंतु एकनी भाषा संस्कृतमूलक छे अने बीजानी भाषा प्राकृतमूलक छे एवो भेद तो तेमनी भाषा वच्चे नथी ज. अहीं में कवि असाइतनी अने कवि भीमनी कृतिना जे शब्दो अने क्रियापदो आप्यां छे ते ऊपरथी स्पष्ट मालूम पडे छे के जैन कवि अने वैदिक कविनी गुजराती भाषा बच्चे को ज भेद नथी. आ संबंधे सद्गत साक्षरवर भाई चिमनलाल दलाले वसंतमां (व० पु० १५ अं० ३-७-१९७२) नीचे प्रमाणे जणावेलुं छे :---
" प्रस्तुत काव्यनी भाषा कोई पण प्रसिद्ध थयेला जैनेतर गूजराती ग्रंथ करतां घणी जूनी छे. प्राकृत तथा अपभ्रंश शब्दो तथा प्रयोगोथी आ काव्य एटलुं बधुं भरपूर छे के जो तेना कर्ताए मंगलमां गणपतिर्नु
1 नाम ना लीधुं होत तो ते जैन काव्य तरीके श्री दलालनो
__गणीने उपेक्षवामां आवे.” " कविए संस्कृत शब्दोने अभिप्राय
___ बदले प्राकृत तथा अपभ्रंश शब्दो ज वापरेला छे. जे जूनी गूजराती ने जैन गुजरातीमां भेद समझनाराओए विचारवा जे छे. आ काव्यनी जूदी जूदी प्रतोमां भाषाना घणा फेरफारो छे; परंतु जे प्रतोमाथी अवतरणो आपेलां छे, तेमांनी एक सं० १४८८ मां लखेली होवाथी तेमां मूळ भाषा घणे मोटे भागे असल स्वरूपमा सचवायेली छे." __ भाई श्रीदलालनु उक्त कथन अक्षरशः खलं छे. पुनरुक्तिदोष स्वीकारीने पण अहीं असाईत अने भीमना केटलाक प्रयोगो फरी वार नोंधी बता, छं:
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