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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति गरुडि चडी हरि आव्या अनइ आवी शक्ति सिंघवाहनी । सप्त रखिश्वर साचू चवि ब्रह्मादिक तिहां आव्या सवि ॥ २१५ ॥ आव्या रूद्र वृषभ सज करी महिषिसुर आविउ संचरी । पाछा रहि आवसि खोडि आव्या सुर तेत्रीसइ कोडि ॥ २४६ ॥ सरगलोकथी साचु मानि सवि अपछरा चडि विमानि । सवि देवता अंतरिख रही दीव्य चक्षु विण दिसिइ नहि ॥ २४७ ॥
(पृ० ९४)
संवत पंनर बारोतरू तिणइ दिनि सोमवार विस्तरु । जालहुर गढ उत्तम ठाउ राउल कान्हमालदे नाउ ॥ ३३८ ॥ पद्मनाभ मति आणइ नवी तेह तणी कीरति वर्णवी । एक चित्त जे नर सांभलइ तेह तणां सवि दुष्कृत टलइ ॥ ३३९ ॥ जे फल लाभइ दीधइ दानि जे फल गंगा तणइ सनानि । जे फल हुइ तप कीधइ सदा जे फल हुइ दर्शनि नर्मदा ॥ ३४० ॥ जे फल सत्य वचन प्रमाण जे फल हुइ सांभलि पुराण । जे फल लहि तापसि सवि जे फल हुइ बंध छोडवि ॥ ३४१॥ जे फल पामइ कीधइ जागि जे फल भेटि हुइ प्रयागि । जे फल पामइ गंगाद्वारि जे फल हुइ भेटि केदारि ॥ ३४२ ॥ जे फल हुइ विद्या उद्धरि जे फल भेटि गोदावरी । जे नारायण दीठइ नेत्रि जे फल हुइ दानि कुरुक्षेत्रि ॥ ३४३ ॥ जे फल पामइ साहसि सती जे फल माहमास गोमती । जे फल लही द्वारिकां खट मासि जे फल भेटि हुइ प्रभासि ॥३४४ ॥
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