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चौदमो अने पन्दरमो सैको
કચ્છ केटलांक उच्चारणो विशेष विलक्षण छे. वळी, केटलाक तळपदा देश्य शब्दोने पण रासकारे वापरेला छे. रासनी शरूआतमां ते, सृष्टिकर्ता परमेश्वरने याद करे छे अने पछीनी गाथामां पोतानो देश, पिता तथा पोतानुं नाम ए बधांने नोंधी बतावे छे. । प्रस्तुत रासकार, अहीं जणावेली बीजी कृतिओना प्रणेताओनी पेठे तळ गुजरातनो नथी तेथी तेनी भाषाने ऊगती गुजराती कहेवा करतां रासकारना समयनी तेना प्रांतमां चालती ‘देशी भाषा' कहेवी वधारे उचित छे. रासकार पोताना देश तरीके पश्चिममां आवेलो कोई ' म्लेच्छदेश' कहे छे, वळी, ते मूलतान वा सामोरू (शाम्बपुर-श्रीजिन०) थी नीकळे छे अने विजयनगर (विक्रमपुर-बीकानेर नहीं परंतु बीकानेरनी आसपासनुं विक्रमपुर-श्रीजिन० )नी विरहिणी साथे वातचीत करे छे अने ते गुजरातमां ठेठ 'खंभात' सुधी आवे छे. एथी एम जणाय छे के रासकारे वापरेली भाषा ऊगती गुजराती जेवी छे अने ते वर्तमानमां सर्वत्र व्यापेली हिंदी भाषा जेवी ‘देशी भाषा' लागे छे. तेम छतां प्रस्तुत रासकारनी भाषा अहीं जणावेली गुजरातना लेखकोनी चौदमा-पंदरमा सैकाओनी बीजी कृतिओनी भाषा जेवी पण छे एटले ए अर्थमां ज में तेनी भाषाने ऊगती गुजराती कहेली छे; अर्थात् रासनी भाषामाटे अहीं वपरायेला 'ऊगती गुजराती' शब्दनो अर्थ 'ऊगती गुजराती जेवी' समझवानो छे. ___ चौदमा अने पंदरमा सैकानी गुजराती कृतिओना अहीं जे नमूना आपेला छे ते पूरता छे. आ रासनी कृतिना नमूनाथी तेमां भाषासंबंधी के बीजी कशी विशेषता नथी ऊमेराती छतां प्रस्तुत कृति एक इस्लामी कविनी छे ते एनी एक खास विशेषता छे अने जे जमानामां सांप्रदायिक वृत्तिना उछाळावाळो जनसमाज हतो ते जमानानो प्रस्तुत इस्लामी कवि ते संकुचित भावथी तद्दन पर रहेलो जणाय छे. अने रासमां कवि, नगरना वर्णन
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