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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
स्त्री मळे छे. ते स्त्री, पोतानो अर्थलोभी पति खंभातथी हजु सुधी कमाईने आव्यो नथी माटे झूरे छे, ते पथिक पासे पोताना विरहदुःखनी वराळ काढे छे, अने पोतानो पति शीघ्र पाछो फरे माटे तेनी साथै संदेशो मोकले छे. रासनी आ, प्रधान वस्तु छे. रासकारे रासमाटे 'संदेसय ' अने 'संनेहय' एम बन्ने शब्दो वापरेला छे. पोते ज्यांथी प्रवास आरंभ्यो छे ते 'मूलथाण 'नुं वर्णन रासकारे विशेष प्रकारे कर्युं छे. तेमां खास करीने तेणे जणाव्युं छे के जे नगरमा रहेनारा चतुर्वेदी लोको वेदोने प्रकाशे छे, ज्यां सुदवच्छ एटले ' सदयवत्स' अने नलनुं चरित्र वंचाय छे, क्यांय क्यांय भारतनी कथा कहेवाय छे अने रामायणनी पारायणो चाले छे, क्यांक संगीत, नाटक, रास अने नाचनो प्रचार छे, वगैरे वगैरे.
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१५२ रासकार एक मुसलमान छतां रासमां जे भाषा तेणे वापरी छे ते शुद्ध छे अने तेमां फारसी शब्द घणा विरल छे तथा रासकारनां
आरासनुं टिप्पन, हिसार दुर्ग-हिसारगढ - मां अषाड शु० दि० आठम ने बुधवारे लखेलुं छे. आ हिसारगढ ते पंजाबमां आवेलुं वर्तमान ' हिसार 'छे.
अवचूरिका पं० नयसमुद्रे लखेली छे. आ संबंधे कोई विशेष वृत्तांत मळतो नथी. नयसमुद्र, अवचूरिकानो कर्ता छे ? के तेनी नकल करनारो ? ए विशे पण कोई हकीकत जडती नथी.
रासनी जुदी जुदी प्रतोमां अनेक पाठांतरो छे. जेमांना आवश्यक एवां बधां प्रस्तुत रासमां आपवामां आवेलां छे. प्रस्तुत रासनी अनेक प्रतो उपलब्ध छे. में जाते आ रासनी प्रति पाटण, पूना अने जोधपुरना राजभंडरमां जोयेली छे, ए रीते बीजे पण आ रासनी प्रतो होवानो संभव खरो.
रासनुं नाम ' संदेशकरास ' वा 'संनेहयरास, ए बन्ने रीते ग्रंथकारे आपेलुं छे. ए बेमांथी ' संदेशक - रास नाम विशेष उचित छे.
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अहीं जे पृष्ठांक के गाथांक आपेला छे ते मारी सामेना फरमाओ प्रमाणे छे. आ फरमाओ वांचवा आपवा माटे आचार्य श्रीजिनविजयजीनो अने भारतीय विद्याभवननो हूं ऋणी छं.
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